उज्जैन । कालिदास संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित तीन दिवसीय संस्कृत नाट्य समारोह की समापनविधि 22 सितम्बर को सायं 7 बजे अभिरंग नाट्यगृह में आयोजित हुई। समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि प्रो.विजयकुमार मेनन कुलपति महर्षि पानिणि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय ने कहा कि भारत की नाट्य परम्परा अति प्राचीन है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र द्वारा नाट्य के प्रथम प्रमाण मिलते हैं।
संस्कृत साहित्य में नाट्य और नाट्य लेखन की एक बड़ी और सम्पन्न परम्परा है। इस परम्परा को हम आज भी निरन्तर निर्वाह कर रहे हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्रीपाद जोशी संस्कार भारती के राष्ट्रीय नाट्य विधा के सह संयोजक ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उद्यम करने से ही जीवन में किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति होती है। कालिदास संस्कृत अकादमी इस नाट्य समारोह के आयोजन से संस्कृत के संरक्षण एवं संवर्धन तथा जन-जन तक संस्कृत भाषा को पहुँचाने का कार्य कर रही है।
इस कार्य से नाटकों के स्तर में भी वृद्धि हुई है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री रोशन कुमार सिंह आयुक्त नगर पालिका निगम ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की संस्कृत भाषा समस्त भाषाओं की जननी है। मुझे संस्कृत नाटकों से परिचित होने का यह अवसर प्राप्त हुआ है। मैं नाटक के सभी कलाकारों को शुभकामनाएं देता हूं। अतिथियों का स्वागत अकादमी के प्रभारी निदेशक डॉ.सन्तोष पण्ड्या, उप निदेशक डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया
तथा कार्यक्रम प्रभारी श्री अनिल बारोड़ ने किया। स्वागत भाषण डॉ.सन्तोष पण्ड्या ने दिया। तत्पश्चात् जनस्थान रंगमंच नासिक द्वारा सुश्री वैदेही मुळये के निर्देशन में वंचते-परिवंचते संस्कृत नाटक की प्रस्तुति की गई। आभार डॉ.योगेश्वरी फिरोजिया ने माना। कार्यक्रम का संचालन श्री माधव तिवारी ने किया।