लेख – प्रतिक्रिया की चिंता किये बगैर लिखने को विवश हूं कि काश बाबासाहब. पर दोनों राजाओं बड़ौदा नरेश और कोल्हापुर नरेश की नजर न पड़ी होती, काश बाबा साहब को एक ब्राह्मण अंबाड़कर ने अपना नाम न दिया होता, काश बाबा साहब के पितृ पुरुष पंडित आत्माराम शर्मा न बने होते, काश बाबा साहब सबसे ज्यादा पढ़े लिखें न होते, काश बाबा साहब ने सिंबल आफ नॉलेज की उपाधि न प्राप्त की होती, काश उन्होंने भारत का संविधान न लिखा होता, भले ही यह कार्य कोई और कर लेता, आखिर दुनिया के 190 देशो के संविधान भी तो किसी न किसी ने लिखें हैं, बो भारत का भी संविधान लिख देता, बाबा साहब ने थोड़ा अच्छा लिखा है, वो थोड़ा बुरा लिख देता, हाँ लिख जरूर देता, परन्तु बाबा साहब ने जो धर्म परिवर्तन किया उसका परिणाम आज दलित भुगत रहा है, 15 % स्वर्ण आज जो देश पर शासन कर रहा है बो अपनी एकजुटता के कारण कर रहा है और 85 % दलित आज बाबासाहब की बजह से चने की तरह बिखर कर रह गया है, याद रहे कि बाबा साहेब अपनी नीतियों के कारण राजनीती में कभी भी सफल नहीं रहे।
भारत के पूज्य गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पुत्रों को कुर्बान कर दिया परन्तु धर्म परिवर्तन नहीं किया, अफ्रीका के नेल्सन मंडेला और अमेरीका के मार्टिन लुथर किंग ने भी कम यातनाये नहीं झेली थीं बे भी चाहते तो मुसलमान बन सकते थे, परन्तु बे जानते थे कि धर्म परिवर्तन से कुछ नहीं होगा और सभी काले लोग हमारे पीछे नहीं आ जाएंगे, आखिर रहना तो उन्ही लोगों के बीच में ही है । आज भी दलितों में कोई सर्वमान्य नेता ऐसा नहीं है जो सभी दलितों का प्रतिनिधित्व कर सके, कोई 98 % दलितों के ईष्ट को अपशब्द बोल रहा है, कोई अपने को हिंदू मानने से इंकार कर रहा है, इसीलिये कुछ नेता सबर्णो की पार्टी में रह कर सत्ता में काबिज हैं भले ही कुछ तलुबे चाट रहे हैं।
राष्ट्रपति ज़ी ने भी सिर्फ और सिर्फ बाबा सा. की उपलब्धियों की ही बात की है आज के 80 % दलितों पर कुछ नहीं बोली, आज भारत को आजाद हुए और संविधान लिखें हुए 75 साल हो गए है फिर भी दलितों की स्तिथि आज भी ठीक नहीं हैं। बो आज भी पैशाब से नहा रहा है । खैर यह धरती वीरों से खाली नहीं है, अवश्य ही कोई ऐसा व्यक्ती आएगा जो सभी दलितों और सभी धर्मों का सम्मान करेगा और सभी को साथ लेकर चलेगा वही राजनीति में सफल होगा, तब तक इंतजार करना होगा ।
एसडी मालवीय 9826887604