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चुनाव के बाद भीम आर्मी कहा सिमट गई है नज़र नहीं आ रही, लोगों ने क्यों बना ली दूरी?

अभी नवम्बर 2023 में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे। नतीजा और नीयत दोनों आपके सामने है। खैर अभी हम बात कर रहे हैं एक ऐसे संगठन की जिसने तमाम संगठनों और राजनीतिक पार्टियों की नींद हराम कर रखी थी। जिसका नाम सुनते ही दिमाग में धोश बन जाती थी वो भीम आर्मी थी। भीम आर्मी भारत एकता मिशन इसका पुरा नाम है। मेरे इस लेख से कई लोगों को मिर्ची लग सकती है और पहले भी मेरी लेखनी से लग भी चुकी है लेकिन मेरा काम है लिखना और मैं वहीं लिखता हूं जो लगभग सही लगता है। इतिहास से थोड़ी सी शुरूआत करूंगा कि समय-समय पर इस बिखरी हुई समाज को कोई न कोई महापुरुष जोड़ने और एक करने की कोशिश करने आया और किसी अच्छे मुकाम तक भी पहुंचा। इसमें सबसे बड़ा नाम यदि कोई है तो वहां मान्यवर कांशीराम साहब है। उन्होंने अपनी पुरी जिंदगी लगा दी तब कहीं जाकर एक बड़ा हुजुम खड़ा कर पाए थे और उस सबमें थी इमानदारी, पार्दर्शिता और सिस्टम प्लान। हम यदि 20-25 साल पहले इतिहास में जाते हैं तो बहुजन समाज पार्टी का मौजूदा सिस्टम पर एक दबदबा कायम था। प्रशासन में भी धौंस दिखाई देती थी। इसका कारण राजनीति नहीं थी उसका कारण था एकजुटता और कांशीराम साहब का संघर्ष। धीरे धीरे वहां धुमिल होता गया और राजनीति में पीछे हटते गए लेकिन एक सिस्टम में बने हुए हैं। कई लोगों ने धोका दिया तो कई लोगों धोका खाया है।

एक दशक बीत जाने के बाद आज आधुनिक इंटरनेट के युग में आए तो फिर सोशल नेटवर्किंग से देश भर के वे लोग जो बाबा साहब अम्बेडकर को जानना चाहते थे जानते थे एक साथ जुड़ने लगे। इसी बीच क्षेत्र में छोटे छोटे संगठन, टोली, समिति बनना शुरू हुई। कोई बड़ा प्लेटफार्म नहीं था लेकिन एक हौसले की जरूरत थी। इसी बीच एक नाम आता है भीम आर्मी का और उसका सरदार एड चंद्रशेखर आजाद। भीम आर्मी बड़ा ही महत्व रखने वाला नाम है और चंद्रशेखर आजाद ने भी मीडिया और ग्लैमरस लुक के साथ आगे बढ़ना शुरू कर दिया। देखते ही देखते हर कोई एससी एसटी और ओबीसी वर्ग के कई लोग उससे जुड़ने लगे यहां तक कि बड़े बड़े अधिकारी व राजनेता भी संपर्क साधने लगे। और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि किसी भी घटना पर 50 लोगों का तुरंत एकत्रित होना। कहीं भी कोई भी घटना होती तो ये भीम आर्मी के लोग तुरंत संपर्क करके मोटरसाइकिल उठाकर निकल जाते और मामले को संज्ञान लेते वहीं थाने घेराव की सूचना भी भीम आर्मी के नाम से सोशल मीडिया पर भी डल जाती तो पुरा मीडिया और पुलिस सिस्टम अर्ल्ट हो जाता। खैर जो भी हुआ कारनामे सभी ने देखें है।

अब हम बात करेंगे कि 2019 के बाद भीम आर्मी 2023 के अंत तक क्यों सिमट गई।

भीम आर्मी दबे कुचलें समाज, युवाओं और बहुजन समाज की एक पहचान और ताकत बन गई थी। एससी एसटी ओबीसी और अन्य वर्ग के ऊपर कोई भी अत्याचार होता तो भीम आर्मी तुरंत पहुंच कर उनकी मदद करती थी। इसमें किसी पार्टी व एक जाति की बात नहीं होती थी इसलिए इसमें सभी लोग जुड़े थे। भीम आर्मी एक सामाजिक संगठन था जिसका राजनीति से कोई वास्ता नहीं था लेकिन जब चंद्रशेखर आजाद ने आजाद समाज पार्टी बनाई उसके बाद धीरे-धीरे बसपा, सपा, बीजेपी, कांग्रेस आदि पार्टियों के समर्थकों ने दूरी बना ली और 30 प्रतिशत लोग कम हो गए। इसके बाद जब चंद्रशेखर आजाद की पार्टी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी के नीचे चुनाव लड़ा और खुद चंद्रशेखर आजाद ने भी चुनाव लड़कर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली तो नतीजा सभी के सामने है और लोगों ने ताना मारना शुरू कर दिया।

सबसे पहले बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों ने ताने मारना शुरू किया और इसके बाद कई लोगों ने संगठन छोड़ दिया। आम आदमी की राय थी कि संगठन अलग रहें और पार्टी अलग रहें। संगठन के अनुसार पार्टी काम करें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और सब मिक्सचर कर दिया गया। जिससे 50 प्रतिशत समर्थकों ने दूरी बनाना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे पार्टी का दबाव संगठन पर बढ़ने लगा जिससे संगठन का काम बंद हो गया और पार्टी को ऊपर रखा जाने लगा। यहां तक कि संगठन भी ठीक से खड़ा नहीं हुआ था कि पार्टी लाकर बिठा दी। इसका मतलब है कि कमजोर नींव पर मकान खड़ा करने लगे थे। संगठन और पार्टी के पदों पर विवाद शुरू हो गया था। कोई पद वितरण का सिस्टम नहीं था। हर किसी को हर कोई लेटर जारी करके अपनी ही धुन बना रहे थे। संगठन के पदाधिकारियों पर कोई ध्यान नहीं दिया। जो है उसको भी नहीं संभाला और अंदर ही अंदर संगठन खोखला होता गया।

इसके बाद अभी नम्बर 2023 में आजाद समाज पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा और खुब वहां वहीं करने लगे लेकिन जब वास्तविकता पता चली की हम तो केवल कागज की नाव पर ही तैर रहे थे तो डूबना तो तय था। कई विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशी तक नहीं मिले यहां तक कि अनुसूचित जाति आरक्षित सीट पर भी कोई प्रत्याशी नहीं मिल रहें थे। इसके कई कारण हो सकते हैं। चुनाव हुआ एक्जिट पोल खोल अभियान भी चला लेकिन कोई बदलाव नहीं आया। एक राज्य को छोड़कर बाकी सभी जगह भाजपा ने कब्जा जमा लिया था। चुनाव के नतीजे देखकर अन्य पार्टियों के तो ठीक है लेकिन भीम आर्मी आजाद समाज पार्टी का एक भी विधानसभा में विधायक नहीं बना पाए। जो लाखों भी भीड़ लेकर चलने वाला खुद चुनाव हार गया और मप्र राजस्थान छत्तीसगढ़ में एक विधायक नहीं निकाल पाए तो जाहिर सी बात है कि लोग शांति से बैठे रहे तो ठीक है।

चुनाव के बाद एक बड़ी घटना सोशल मीडिया पर वायरल होती है जिसमें संगठन व पार्टी के मुख्य लोगो पर चुनाव में दलाली का आरोप लगता है और धीरे-धीरे 50 प्रतिशत समर्थकों ने संगठन व पार्टी छोड़ कर बैठे हैं। अब वे एकत्रित भी नहीं होना चाहतें हैं। कुल मिलाकर 80 प्रतिशत लोग संगठन छोड़ दिया है। 15-20 प्रतिशत लोग ही मुश्किल से बचें होंगे? इसका मतलब है कि एक बार फिर से बहुजनों को ठगा गया है। स्वार्थ और लालची लोगों ने बाबा साहब अम्बेडकर और मान्यवर कांशीराम साहब का नाम ख़राब किया है। बहुजन मुवमेंट इसलिए नहीं पनपता है कि ये लोग बिक जाते, कुछ होता नहीं है? करते क्या हैं और कहते क्या है? अपनी बात पर अटल नहीं है? इमानदारी पार्दर्शिता और सिस्टम प्लान नहीं है और सबसे बड़ी बात की दुरदर्शिता तो बिल्कुल भी नहीं है।

आज भीम आर्मी सिमट गई है और इसका सबसे बड़ा कारण है राजनीति के दलदल में धंसते जाना, लोग इसलिए जुड़े थे कि समाजिक कार्य है पार्टी से कोई संबंध नहीं था। जब से पार्टी बनाई और कुछ लोगों को संगठन के पदाधिकारियों को अपने पद का भी घमंड इतना था कि किसी को कुछ समझते ही नहीं थे। यहां तक कि कोई प्रोटोकॉल सिस्टम तक तैयार नहीं किया गया था। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि किसी को कुछ पता ही नहीं रहता और बड़ा पदाधिकारी बन जाता था। अभी कुछ दिन पहले ही पुनः भीम आर्मी में प्रवेश अध्यक्ष बनाया है लेकिन प्रदेश में रहने वाले भीम आर्मी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दत्तू मेढे़ को कुछ पता ही नहीं था और ये मप्र में पहले प्रदेश अध्यक्ष रह चुके थे। यहां तक कि कई सालों से जिलों जिला अध्यक्ष तक नहीं बदले गए। इन सब घटनाओं से एक बात और भी प्रतीत होती दिखाई दे रही है कि क्या चंद्रशेखर आजाद भी शायद किसी के इशारों पर काम कर रहे थे या इनके सलाहकार शायद भांग खाकर काम कर रहे थे? जो इनको सही ग़लत की पहचान नहीं थी। खैर कहानी बहुत लम्बी हो जाएगी लेकिन अब पुनः 2045 तक इंतजार करना पड़ेगा इस मिशन को फिर से खड़ा करने के लिए। क्योंकि आज के नौजवान अब शायद ही वापिस इसके लिए काम करेगा।

आपको क्या लगता है। यदि आपके भी कोई सुझाव, राय हो तो हमें editor.kabirmission@gmail.com पर भेज सकते हैं।

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