लेख समाज

कविता। चले जा रहे उधर। नहीं रहे सुधर।।

पता है कि वहां जाने से होगा अपमान।

करेगें जातिय नफ़रत, होगा भेदभाव, मिलेगा, घाव पर घाव।।

मन के दूर हूऐ नहीं विकार। भीतर भरे अंधकार। ।

करेगें उंच नीच, पक्षपात । फिर से होगा, कुठाराघात, दिन हो या रात।।

चले जा रहे उधर। नहीं रहे सुधर।। जाति धचले जा रहे उधर। नहीं रहे सुधर।।

जाति, धर्म, उंच नीच हर तरफ हावी है। दलित पिछडों के हालात प्रभावी है।।

मंदिरों में पूजा अर्चना महिलाओं से आये दिन मारपीट अपमान। मामले पुलिस में दर्ज फिर भी इसी में सान। ।

समानता के कहां रहे अधिकार। खा रहे हे मार।।जहां जाने से हो अपमान। अपने ही मॅदिर में बचाते नही भगवान। ।

अब तो भले बुरे को पहचान। अरे ओ इंसान, अरे ओ इंसान।।

मदन सालवी ओजस्वी चितौडगढ राजस्थान 95888-32673

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