मुरैना/पोरसा। जिस निशुल्क खाद्यान्न वितरण पर सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है। उस खाद्यान्न वितरण प्रणाली को पीडीएस दुकानों के संचालक और जिम्मेदार ही पलीता लगा रहे है। केंद्र सरकार व राज्य सरकार ने एक बार फिर से निशुल्क खाद्यान्न वितरण काे आगे बढ़ा दिया है जिसमें गरीबों को दोगुना खाद्यान्न मिलना चाहिए।
लेकन यहां कई पंचायतों में यह पीडीएस दुकानों से गरीबों को महज आधा ही खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है। खासबात यह है कि इस बात की जिम्मेदार अधिकारी ही जांच नहीं करते। जिसके चलते गरीबों के आधे खाद्यान्न पर पीडीएस दुकान संचालक ही बंटरबांट कर डालते हैं।
पोरसा की गई पंचायतें एसी है जहां गरीबों को यह आधा खाद्यान्न मुहैया कराया गया है। जबकि सरकार की ओर से पूरा खाद्यान्न इन दुकानों तक भेजा गया है।उल्लेखनीय है कि कोरोना संक्रमण काल में गरीबों को पेट भरने के लिए किसी तरह की परेशानी न हो। इसके लिए निशुल्क खाद्यान्न वितरण योजना शुरू की गई।
जिसमें केंद्र सरकार की ओर से और राज्य सरकार की ओर से अलग अलग खाद्यान्न हितग्राहियों के लिए भेजा जाता है। यानी कि जिन हितग्राहियों को चार किलो गेहूं व एक किलो चावल दिया जाता था। उन्हें कायदे से 8 किलो गेहूं और दो किलो चावल प्रति व्यक्ति के मान से खाद्यान्न दिया जाना चाहिए। लेकिन यहां महज चार किलो गेहूं और एक किलो चावल के मान से ही वितरित किया जा रहा है।
इसका सीधा मतलब है कि आधा खाद्यान्न बंदरबांट किया जा रहा है। इसका उदारण पोरसा की रजौधा पंचायत, सेंथरा अहीर, गुढा गांव सहित अन्य है। यह वे नाम है जहां के लोगों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें आधा ही खाद्यान्न पीडीएस दुकान से वितरित किया गया। अगर इस मामले की जिम्मेदार अन्य पंचायतों में जाकर जांच करेंगे तो यह बेहद बड़ा खाद्यान्न घोटाला सामने आएगा। जो कि करोड़ों रुपये में सामने आएगा।
जबकि सरकार की मंशा है कि डबल खाद्यान्न मिलने से इन गरीबा परिवारों को रोजी रोटी के लिए जद्दोजहद नहीं करनी पड़े। लेकिन यहां निचले स्तर पर आकर योजना को पलीता लगा दिया जाता है। यहां खाद्यान्न वितरण न किए जाने की ही शिकायतों क अंबार लगे रहते है। इसके बावजूद इस ढर्रे में कोई बदलाव नहीं आया है। इसकी वजह है कि ऐसी शिकायतों के मामले में कोई ठोस कार्रवाई देखने को नहीं मिलती।