राजगढ़

सारंगपुर/ अमलावता में गौ माता की मृत्यु हो जाने पर दिखी ग्रामीणों की आस्था जुलूस निकालकर श्मशान भूमि में दफनाया

गांव अमलावता में गाय की मृत्यु हो जाने पर ढोल बाजे के साथ फटाखे फोड़कर और जुलूस निकालते हुए पूजा अर्चना कर शमशान भूमि में दफनाया

अमलावता में गौ सेवा को लेकर मिशाल पेश की गई

हिंदू धर्म में गाय को गौ माता का दर्जा दिया गया है सनातन संस्कृति में वेदिक काल से ही हिंदू धर्म के लोग गाय को गौ माता मानकर उसकी पूजा अर्चना करते हैं, किंतु आज कलयुग के इस भीषण दौर में गाय की क्या हालत है यह किसी से छिपी नहीं है आए दिन हम देखते हैं कहीं सड़कों पर गाय माता की एक्सीडेंट के कारण मृत्यु हो जाती है तो कहीं भूखी प्यासी गौ माता तड़प कर मर जाती है,

आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गाय को गौ माता मानकर पूजा अर्चना की जाती है, मामला ग्राम पंचायत पिपलिया पाल के गांव अमलावता का है, गांव अमलावता के ग्रामीणों ने गौ सेवा के कार्य में मिसाल पेश कि है, गांव अमलावता में सभी ग्रामीणों के सहयोग से सुंदरकांड समिति के सदस्यों ने गांव में गाय की मृत्यु होने पर विधि विधान से पूजा अर्चना की और ढोल बाजे के साथ पटाखे फोड़ते हुए पुरे गांव में जुलूस निकाला गांव की माताएं और बहनों ने गौ माता को फूल माला चढ़ा कर वा साड़ी भेंट कर अंतिम विदाई दी इसके बाद सभी ग्रामीणों के सहयोग से श्मशान भूमि में जेसीबी की मदद से गौ माता को दफनाया,

ग्रामीणों कि इतनी अटूट आस्था के पीछे की वजह यह है कि जिस गाय की मृत्यु हुई थी वह गाय लंबे समय से गांव में रह रही थी लगभग 10 से 11 साल उस गाय को गांव में निवास करते हुऐ हो गए थे, वह सुबह से ही ग्रामीणों के घर के दरवाजे पर आ जाती थी व काफी सपूत भी थी, जिससे ग्रामीण रोज सुबह गौ माता के दर्शन लाभ होते थे व ग्रामीण रोज सुबह शाम गौ माता को रोटी दिया करते थे, ग्रामीणों का कहना है कि यह गाय गांव के लिए लक्ष्मी का रूप थी लंबे समय से बीमार भी थी जिसका इलाज भी ग्रामीणों द्वारा करवाया गया था किंतु जब गाय की मृत्यु हुई तो ग्रामीणों की आस्था उमड़ आई व उन्होंने विधि विधान से पूजा अर्चना कर व जुलूस निकालकर गौ माता का अंतिम संस्कार किया ।

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