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चुनाव सर पर और सारंगपुर विधानसभा में दोनों पार्टियों से उम्मीदवार घोषित होने की छटपटाहट, जनता कर रही इंतजार, जाने क्या है माजरा

राजगढ़। जिले में पांच विधानसभा हैं जिनमें एक आरक्षित विधानसभा सारंगपुर हैं। यह भारतीय जनता पार्टी की गोल्डन सीट मानी जाती है। अभी 2023 के विधानसभा चुनाव सर है चुनाव तारीख का ऐलान हो गया लेकिन उम्मीदवार घोषित नहीं हुई तो दोनों तरफ छटपटाहट चल रही है।

जाने अभी तक का चुनाव इतिहास

सारंगपुर विधानसभा से लगातार भाजपा को जीत हासिल हुई है। 1980 से लेकर 2018 तक के विधानसभा चुनावों में केवल दो बार ही कांग्रेस ने जीत हासिल कि है। एक बार 1985 में और दुसरी बात 1998 में कृष्ण मोहन मालवीय 2071 वोट से जीते थे। वहीं भाजपा ने 7 विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करके 2003 से लगातार कब्जा जमा रखा है। भारतीय जनता पार्टी के स्व. अमरसिंह कोठार 1980 से विधायक बने थे। इसके बाद कांग्रेस से 1985 में हजारीलाल मालवीय बनें थे। 1990 और 1998 में फिर स्व. अमरसिंह कोठार आ गए। इसके बाद 1998 में कांग्रेस से कृष्ण मोहन मालवीय जीते थे। फिर 2003 में स्व. अमरसिंह कोठार भारी मतों से जीत हासिल की। इसके बाद पुर्व विधायक स्व. अमरसिंह कोठार के देहांत हो गया और 2008 में भाजपा से विधायक गौतम टेटवाल को मैदान में उतारा और भाजपा की सीट यथावत रही। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने श्री टेटवाल को मौका नहीं दिया और पुर्व विधायक स्व श्री अमरसिंह कोठार के पुत्र कुंवर कोठार को लेकर आई और विधायक कुंवर कोठार 2013 और 2018 दोनों विधानसभा चुनाव में सीट पर अपनी पकड़ जमाए हुए हैं।

अब है अहम मुद्दा

2018 के विधानसभा चुनाव में विधायक कुंवर कोठार का पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा अंतर्विरोध चालू हो गया था और उनको जीत हासिल करना बड़ा मुश्किल साबित हो रहा था जिसका सीधा फायदा कांग्रेस प्रत्याशी रहे कला महेश मालवीय को मिल रहा था लेकिन यहां संभव नहीं हो सका और विधायक कुंवर कोठार ने 4381 वोट से जीत गए।

वहीं कांग्रेस सारंगपुर सीट पर कब्जा जमाने के लिए सालों से छटपटा रही है लेकिन लोकल के कांग्रेसी नेताओं के आपसी विरोध और पार्टीवादी न होकर व्यक्तिवादी सोच रखने के कारण लगातार हार का मुंह देख रही है। माना जाता है कि कांग्रेस सारंगपुर सीट से विधायक का टिकट मालवीय (बलाई) समाज को ही देती आ रही है जिससे अजा वर्ग के लोग विरोध करने लगते हैं और जातिगत समीकरण नहीं बनाना भी एक पहलु रहा है। जिसका खामियाजा बलाई समाज लगातार भुगत रहा है।

वहीं भाजपा के विधायक कुंवर कोठार का भी विरोध देखने को मिल रहा है शायद इसलिए अभी तक भाजपा ने इस गोल्डन सीट पर श्री कोठार ने नाम पर मुहर नहीं लगाई है। बीजेपी शायद नए चेहरे की तलाश में हैं या पुर्व विधायक गौतम टेटवाल की चर्चा गलियारों में चल रही है। इसके अलावा पार्टी के नेता भी दौड़ में लगे हुए हैं तो वहीं कांग्रेस भी कमर कस रही है लेकिन अभी तक कोई भी नाम सामने नहीं आया है। कांग्रेस का लगातार हारने के कारण इस सीट पर गहरा मंथन चल रहा है। सुत्रो के अनुसार जानकारी है कि कांग्रेस को हराने में कांग्रेसी नेताओं का ही बड़ा हाथ माना जाता है और जातिगत समीकरण के साथ साथ टिकट मांगने वाले उम्मीदवारों की हताशा ही पार्टी को जीत नहीं दिला रहे हैं और पार्टी का काम न करते हुए शांत बैठे बैठे खिचड़ी पकाने में जुटे रहते हैं।

सारंगपुर विधानसभा में बाहुल्य बलाई समाज भी इस बार कमर कसे हुए हैं कि हर बार समाज का प्रत्याशी हार रहा है और भाजपा ने बलाई समाज से आज तक कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया है। यह जाति की राजनीति दोनों तरफ है। हर कोई अपनी जाति का उम्मीदवार चाहता है। वहीं बलाई से दो बार विधायक रहे उन्होंने भी स्वयं की जाति के लिए भी ऐसा कोई काम नहीं किया है जिससे समाज का पुरा समर्थन मिल सकें। वहीं देखा जाए तो कुछ प्रतिशत वोट भाजपा में भी शेयर हो रहें हैं।

दोनों पार्टियों ने अभी तक क्यों घोषित नहीं किए उम्मीदवार

2018 के विधानसभा चुनाव देखते हुए और विधायक कोठार के विरोध के चलते भाजपा कोई जोखिम नहीं लेने की मुड़ में दिखाई दे रही है और कोई नया उम्मीदवार घोषित कर सकती हैं जिससे जीत हासिल हो सकें। उधर कांग्रेस भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। उन्हें भी जिताऊं उम्मीदवार पर ही भरोसा चाहिए। ऐसे में दोनों तरफ उम्मीदवार को लेकर कसमकस चल रही है। कांग्रेस में दो दर्जन उम्मीदवार हैं तो बीजेपी में एक दर्जन नाम शामिल थे। लेकिन अभी सुत्रो के अनुसार कांग्रेस में पांच नाम प्रमुख है जिसमें पुर्व विधायक कृष्ण मोहन मालवीय, महेश मालवीय, घनश्याम मालवीय, रोशन खत्री, बनवारी लाल मालवीय का है इसमें भी दो नाम विषेश रूप से सामने है बस मुहर लगना बाकी है। वहीं भाजपा में विधायक कुंवर कोठार, पुर्व विधायक गौतम टेटवाल, किरण मालवीय और मोहन सोलंकी के नाम है इनमें भी दो नाम विषेश प्रमुख है। जल्दी ही दोनों तरफ से एक एक प्रत्याशी पर मुहर लगना बाकी है।

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