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भारतीय संविधान ने अस्पृश्यता का अंत किया है पर भारतीय समाज ने नहीं।

रिपोर्ट:- सतीश भारतीय सागर । कबीर मिशन समाचार

मैं जब गांव सेरुआ में छाछ लेने गया। तब बरेठा समुदाय की एक महिला से मैंने छाछ खरीदने के लिए कहा, तो उस महिला ने मेरा हुलिया और गेटप देखकर मुझसे दो बार पूछा क्या वाकई आप मेरे यहां से छाछ खरीदेगें? महिला के दो बार पूछने से ताज्जुब भरे लहजे में मैने कहा आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?तब महिला कहती है हम बरेठा समुदाय से है इसलिए पूछा! महिला का ऐसा बोलना यह दर्शाता है कि संविधान ने अस्पशृता का अंत किया है पर समाज नहीं।

यह वाक्या कपिल भारती (बीएससी) के साथ हुआ। जिसे उन्होनें संविधान के मूल्यों पर कबीर होस्टल सागर में आयोजित वार्ता मेेें साझा किया। वार्ता में आगे अनुज (एम.ए) यह बताते है कि सागर जैसे शहर में विद्यार्थी को किराये पर रुम लेने में कठिनाई होती है या यह सुनने मिलता है कि अनुसूचित जाति के लोगों को हम रुम नहीं देते है। अनुज कहते हैं कि हमारा संविधान समानता (अनुच्छेद14) की बात करता है फिर हमारे साथ यह असमानता क्यों?

चिंतनीय है कि एक तरफ देश आजादी का अमृत उत्सव मना चुका हैं, दूसरी तरफ जातिवाद के जाल में इंसान को फंसाएं रखा गया है। जिससे संविधान के स्वतंत्रता, समानता, न्याय व बंधुता जैसे संविधानिक मूल्यों का हनन होता है। आगे इस वार्ता में अनुभव साझा करते हुए प्रदीप (बीए) बताते है कि गांव में जातिवाद का फैलाव कारण आर्थिक कमजोरी भी है। वह कहते मेरे बडे पापा पेशे शिक्षक हैं। और आर्थिक स्थिति थोड़ी ठीक है, तो लोग उनसे जातिवाद उतना नहीं मानते जितना एक आर्थिक तौर पर कमजोर व्यक्ति से मानते है। यानी यहां जातिवाद आपकी औकात अर्थात आर्थिक वजन को देख कर किया जाता है। लेकिन क्या हमारा संविधान इसकी इजाजत देता है? बिल्कुल नहीं।

इस वार्ता में लिंग आधारित मुद्दों पर भी युवाओं ने अपने विचार व्यक्त किए। जिसमें बताया कि समाजिक मानसिकता इतनी कमजोर की गयी है कि लोग अपनी 12,14,16 साल की लड़कियों की शादी कर देते हैं और उनके अंधकारमय भविष्य का आगाज़ हो जाता है। और घर की महिलाएं और लड़कियां इसका विरोध करती हैं। तब उन्हें लिंग आधारित भेदभाव से प्रताड़ित किया जाता है। जातिवाद और लिंग आधारित भेदभाव खत्म करने के लिए सरकार और जनता ने कितने प्रयास किए? और यदि प्रयास किए तब जातिवाद और लिंग आधारित भेदभाव कितना प्रतिशत कम हुआ? महेश (बीएससी) जैसे अन्य युवाओं का मानना है कि जातिवाद और लिंग आधारित भेदभाव कम करने के लिए सरकार को टीवी चैनल, अखबार और सोशल मीडिया के जरिये जागरुकता को प्राथमिकता देने की दरकार है।

और गांव-गांव भेदभाव, जातिवाद, ना किये जाएं, इसके लिए स्टाम्प खड़े किये जाएं। तब कई मायनों में संविधान की समानता, सामाजिक न्याय, बंधुता जैसे संवैधानिक मूल्यों को दृढ़ करने का की पहल शुरु होगी। और हम फिर वाकई, भेदभाव को त्याग कर आजादी का अमृत महोत्सव गर्व से मना पायेगें। इस वार्ता में कबीर छात्रा के कई विद्यार्थी और वार्डन भी मौजूद रहे।

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