~ लेखक निकुंज मालवीय
सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र में दो प्रमुख कस्बे है ;सारंगपुर और पचोर। इस क्षेत्र में दो प्रमुख नदियां प्रवाहित होती है ; कालीसिंध और नेवज जो कि क्रमशः सारंगपुर और पचोर से होकर गुजरती है।
सारंगपुर कालीसिंध नदी के तट पर स्थित एक प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का अनुपम उदाहरण है ,कहा जाता है कि यहां पर कपिलमुनी ने तपस्या की थी. जिसकी स्मृति स्वरूप यहां पर कपिलेश्वर महादेव मंदिर अपनी गौरवमयी गाथा आज भी सुना रहा है।इसीलिए इसे कपिलमुनि की नगरी भी कहा जाता है।
मध्यकाल में सारंगपुर में बाजबहादुर का शासन रहा । चूंकि बाजबहादुर और रानी रूपमति की प्रेम कहानी का साक्षी यह शहर रहा है इसलिए इसे रानी रूपमति की नगरी भी कहा जाता है।
वस्तुतः इस लेख में हम सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र के राजनैतिक इतिहास के बारे में चर्चा करेंगे।
सन् 1962 से आज तक की उपलब्ध जानकारी के आधार पर हम इस क्षेत्र की राजनैतिक भूमि का विश्लेषण करेंगे।
सन् 1962 में गंगाराम जाटव जनसंघ से यहां से विधायक चुने गए। पुनः 1967में एक बार फिर जनता ने इन पर विश्वास जताया और विधायक बने।
सन् 1972 में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर इंदौर के रहने वाले सज्जन सिंह विस्नार चुनाव लड़े। सज्जन सिंह विस्नार ने भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार अमरसिंह कोठार को कुल 1253 मतों से हराया। इस चुनाव में पूर्व विधायक गंगाराम जाटव स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़े किंतु केवल 1446 वोट ही हासिल कर सकें।
सन् 1977 का विधानसभा चुनाव बहुत रोचक था । इसमें कांग्रेस पार्टी ने 25वर्ष के नवयुवक हजारीलाल मालवीय को टिकट दिया । वही जानता पार्टी ने सज्जन सिंह विस्नार को टिकट दिया । अमरसिंह कोठार और गंगाराम जाटव निर्दलीय चुनाव लड़े। इस चुनाव में कुल 39487 वोट पड़े। उसमें से सीटिंग विधायक सज्जन सिंह विस्नार को 1005 मत मिले और वे चौथे स्थान पर रहे। गंगाराम जाटव जो कि 2 बार के विधायक थे ,उन्हें 1549 मत प्राप्त हुए और वे तीसरे स्थान पर रहे। निर्दलीय प्रत्याशी अमरसिंह कोठार कांग्रेस प्रत्याशी हजारीलाल मालवीय को 5365 मतों से हराकर चुनाव जीते। इस चुनाव ने दो दिग्गजों (सज्जनसिंह विस्नार और गंगाराम जाटव ) की जमानत जब्त करवा दी।
सन् 1980 के विधानसभा चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने अमरसिंह कोठार को टिकट दिया । जबकि कांग्रेस ने भंवरलाल यादव को टिकट दिया। हजारीलाल मालवीय ने यह चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा। इस चुनाव ने कुल 39364 वोट पड़े। हजारीलाल मालवीय ने कुल 4032 मत प्राप्त किए और 10% से अधिक वोट हासिल कर अपनी राजनैतिक ताकत को बताया। ध्यातव्य है कि 1977 के चुनाव में दो दिग्गज नेता भी निर्दलीय के रूप में इतने मत हासिल नहीं कर पाए थे। भाजपा के अमरसिंह कोठार ने यह चुनाव 5746 मतों से जीता और दूसरी बार विधायक बनें और अपना नाम क्षेत्र में सरल स्वभाव वाले कद्दावर नेता के रूप में दर्ज कराने में सफल हुए।
सन् 1985 में भाजपा ने पुनः अमरसिंह कोठार टिकट दिया तो वही कांग्रेस ने हजारीलाल मालवीय की काबिलियत को देखते हुए उन्हें टिकट दिया। भंवरलाल यादव ने यह चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा। इस चुनाव ने कुल 41537 वोट पड़े ,उसमें से भंवरलाल यादव ने 4066 मत प्राप्त करके अपनी ताकत दिखाई। यह चुनाव हजारीलाल मालवीय दो बार के विधायक अमरसिंह कोठार को 4167 वोटों से हराकर महज 32 वर्ष की आयु में विधायक बनें। युवा विधायक हजारीलाल मालवीय अपनी विचारधारा में ही बाबा साहब अम्बेडकर के अनुयायी रहे हैं । एक प्रसंग है कि जब हजारीलाल मालवीय पहले दिन विधानसभा पहुंचते है तो उन्हें सदन में संविधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर की तस्वीर नहीं दिखाई देती है। वे शपथ ग्रहण करने के बाद अपने पहले वक्तव्य में सदन का ध्यान बाबा साहब की ओर आकर्षित करते हुए संकल्प पारित करवाकर बाबा साहब की तस्वीर विधानसभा भवन में लगवाने का साहसिक कार्य करते हैं।युवा अम्बेडकर अनुयायी शिक्षा का महत्व जानते थे, फलस्वरूप पचोर में उन्होंने डिग्री कॉलेज की स्थापना करवाई साथ-ही-साथ पॉलिटिकनिक कॉलेज भवन भी अपने विधानसभा क्षेत्र में स्थापित करवाया। नवोदय को लेकर गुलाबसिंह सुस्तानी और मालवीय जी में विवाद हुआ तो सारंगपुर विधानसभा की सीमा के समीप ही नवोदय विद्यालय की स्थापना हुई। हजारीलाल मालवीय जी का कार्यकाल विशेष रूप से शिक्षा के क्षेत्र ने स्वर्णयुग साबित हुआ।
सन् 1990 के चुनाव में भाजपा ने पुनः अमरसिंह कोठार को टिकट दिया किन्तु कांग्रेस ने भयालाल को टिकट दिया। इस चुनाव में कुल 58626 वोट पड़े और कांग्रेस को कुल 16351 मतों की अभी तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा।
सन् 1993 के चुनाव में भाजपा ने पुनः अमरसिंह कोठार को टिकट दिया जबकि कांग्रेस ने रतनलाल वर्मा को टिकट दिया।इस चुनाव में अमरसिंह कोठार 3192मतों से जीतें।
सन् 1998 का चुनाव भी बड़ा रोचक था इसमें भाजपा ने अमरसिंह कोठार का टिकट काटकर आष्टा के पूर्व विधायक और कद्दावर नेता नारायणसिंह केसरी को टिकट दिया। वही कांग्रेस ने सरपंच और जनपद सदस्य रहे 27 वर्षीय युवा कृष्णमोहन मालवीय को टिकट दिया। पार्टी में वर्षों की उपेक्षा झेल रहे हजारीलाल मालवीय ने एक बार पुनः निर्दलीय चुनाव लडने का निश्चय किया और रेल के इंजन के चिन्ह पर चुनाव लड़े। इस चुनाव ने कुल 77203 वोट पड़े। पूर्व विधायक हजारीलाल मालवीय ने 8191 अर्थात् कुल मतों का 10.61% मत प्राप्त किए। वही कृष्णमोहन मालवीय ने अपने साथी की बगावत के बावजूद भाजपा के कद्दावर नेता को 2071 मतों से चुनाव हराया। कृष्णमोहन मालवीय भी अपने अच्छे कार्यकाल के लिए जाने जाते हैं।
सन् 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व विधायक अमरसिंह कोठार को टिकट दिया। वही कांग्रेस ने स्कूल शिक्षक हरिराम मालवीय को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया ,लेकिन उस समय सोनिया गांधी जी की विशेष अनुशंसा पर कांग्रेस ने अपना टिकट बदलकर जिला पंचायत अध्यक्ष मीना हजारीलाल मालवीय को दिया। जिससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आक्रोश पैदा हो गया। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में प्रताप वर्मा ने चुनाव लडा और 6903 वोट हासिल किए। वही कांग्रेस को 22609 मतों की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। और अमरसिंह कोठार पांचवी बार विधायक बनें। इसी कार्यकाल के दौरान अमरसिंह कोठार जी का देहांत हो गया और एक लंबी राजनैतिक पारी खेलकर वे सदा-सदा के लिए सारंगपुर की जनता के हृदय में अमर हो गए।
सन् 2008 के चुनाव में भाजपा के पास जीत की गारंटी अमरसिंह कोठार नहीं थे । जिससे भाजपा के भीतर ‘राजनीतिक वैक्यूम’ की स्थिति बन गई। ऐसी स्थिति में संघ परिवार की अनुशंसा पर भाजपा ने गौतम टेटवाल को टिकट दिया। वहीं कांग्रेस ने 29 वर्षीय तेज तर्रार युवा सरपंच हीरालाल मालवीय को टिकट दिया। चुनावी परिणाम के रूप में गौतम टेटवाल ने 16310 मतों से जीत दर्ज की। गौतम टेटवाल का कार्यकाल एक दबंग विधायक के रूप में जाना जाता है। उनकी यह दबंगता अगले चुनाव में उनके टिकट कटने का कारण भी बनी।
सन् 2013 के चुनाव में भाजपा के स्थानीय नेता ने स्व.अमरसिंह कोठार के शासकीय इंजिनियर पुत्र कुंवरजी कोठार को चुनाव लडने के लिए तैयार किया। और भाजपा ने मुहर लगाकर कुंवरजी कोठार को टिकट दिया। वही कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक कृष्णमोहन मालवीय को टिकट दिया। इस चुनाव के परिणामस्वरूप कुंवरजी कोठार ने 19113 मतों से जीत हासिल की और एक प्रशासक से नेता बने कुंवरजी कोठार ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की।
सन् 2018 में भाजपा ने पुनः कुंवरजी कोठार को टिकट दिया तो वही कांग्रेस ने दो बार की जिला पंचायत सदस्य रही सारंगपुर की महिला प्रत्याशी के रूप में श्रीमती कला महेश मालवीय को टिकट दिया। इस बार भाजपा और वर्तमान विधायक के प्रति जनता में बहुत आक्रोश था। यह तक की कुछ ग्रामीणों ने तो विधायक कुंवरजी कोठार को अपने गांव में आने तक का विरोध किया था। अपने पहले कार्यकाल में ही कुंवरजी कोठार ने जनविद्रोह झेला। लेकिन अंततः तमाम संघर्षों के बावजूद 4381 मतों से चुनाव जीत कर उन्होंने दूसरी बार विधायक के रूप में अपने आप को स्थापित किया।
ये था सारंगपुर विधानसभा क्षेत्र का संक्षिप्त राजनीतिक इतिहास। यह इतिहास सारंगपुर के हर मतदाता और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को जानना चाहिए। और सत्ता के दावेदारों से अपने गंभीर सवाल पूछना चाहिए। सारंगपुर भौगोलिक रूप से इंदौर और भोपाल के निकट और राष्ट्रीय राजमार्ग पर होने के बावजूद भी हर क्षेत्र में पिछड़ा कैसे रह गया ? एसे ही बहुत से सवाल है जो हमें सत्ता के दावेदारों से पूछना है। हमें पूछना है -क्यों आज अस्पताल की बड़ी- सी बिल्डिंग होने के बावजूद पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं है? आखिर क्यों हमें स्वास्थ्य के लिए शाजापुर ,इंदौर ,उज्जैन या भोपाल जाना पड़ता है? हमें पूछना होगा कि हमारे महाविद्यालय की हालत बद से बत्तर क्यों है? हमें पूछना होगा कि सिद्धार्थ ट्यूब फैक्ट्री के बंद होने के बाद कोई बड़ी इंडस्ट्री हमारे यहां क्यों नहीं लग सकीं? ऐसे ही अनेक सवाल है जो हमें सत्ता के दावेदारों की आंखों में आंख डालकर पूछना होंगे।