उत्तरप्रदेश

कव्वाली और भजन सूफियाना का अंदाज सामने आ गया और कट कुईया में मोड़ आ गया।

रिपोर्टर योगेश गोविन्दराव तहसील संवाददाता कप्तानगंज कुशीनगर

आज पडरौना के कट कुईया मोड़ पर 300 से अधिक स्टेज शो कर चुकी हैं कानपुर की प्रसिद्ध कव्वाली शिवा परवीन,
कुशीनगर पडरौना कट कुईया मोड स्थित गुप्ता सहित मर्द शाह बाबा रहमतुल्लाह अल्लाह के सालाना उर्स के मौके पर आयोजित दो दिवसीय जवाबी कव्वाली मुकाबले में आई और मुल्क के अलग-अलग जगहों पर लगभग 300 से अधिक स्टेज शो कर चुकी है राष्ट्रीय स्तर की मशहूर कव्वाली मोहतरमा शिवा परवीन से हुई खास बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि भजन का सूफियाना अंदाज ही कव्वाली है।

यदि खुदा को इससे जोड़े तो अपने शब्दों के माध्यम से उनके गुणों के गुणगान से शुरुआत करते हैं तो लोगो की फरमाइश पर ग़ज़ल, नज़्म, नातिया, कलाम, देशभक्ति, नगमे, और शेरो शायरी भी सुनाई गई शिवा परवीन ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में सूफीवाद और सूफी परंपरा के अंतर्गत भक्ति संगीत की एक धारा के रूप में उभर कर आई इसका इतिहास 700 से भी ज्यादा पुराना है वर्तमान में या भारत पाकिस्तान एवं बांग्लादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा है एक विशेष प्रकार की गायन पद्धति अथवा धूम जिसमें कई प्रकार के काव्य, विधान या, गीत, यथा, कसीदा, गजल, रुबाई, आदि गाए जा सकते हैं कव्वाली के गायक कव्वाली कहे जाते हैं और इसे सामूहिक गाने के रूप में अक्सर पीरों के मजारों या सूफियों की महफिल या शो में गाया जाता है ।

कव्वाली जातिगत पैसा नहीं बल्कि कर्म गत है अतः कव्वाली की कोई विशेष जाति नहीं बल्कि कव्वाली एक पैसा होता है उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान सूफी संतों का मुल्क है संत को सूफी काले या सूफी को संत एक ही बात है सिर्फ अल्फाज अलग-अलग है लेकिन दोनों मायने एक ही है उन्होंने यह भी कहा कि फूहड़ से कव्वाली हमेशा दूर रही है लेकिन कुछ नौ के कव्वाली कभी-कभी स्टेज पर चल जुनून हरकतें कर देते हैं जो सही नहीं है लोगों के साथ ही दर्शकों को भी अपनी फरमाइश पर गौर करना चाहिए निश्चित रूप से बेहतर कव्वाली सुनने को मिलेगी आप सभी लोगों को।

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