मध्यप्रदेश राजगढ़ राजनीति

राजगढ़। 28 फ़रवरी जन्मदिवस पर विशेष, दिग्विजय सिंह ने सतत संघर्ष से तैयार की राजनैतिक ज़मीन,कांग्रेस विचारधारा के प्रति अटूट निष्ठा से शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा जताया विश्वास।

कबीर मिशन समाचार पचोर-राजगढ़
देवेंद्र सिंह भिलाला

राजगढ़-ब्यावरा। समूचे देश में यदि संघर्षशील ज़मीनी नेताओं की चर्चा हो रही हो और दिग्विजय सिंह का नाम न आये ऐसा हो ही नही सकता। 1969-70 में जनप्रतिनिधि के रूप में राघौगढ़ नगरपालिका अध्यक्ष से अपनी राजनैतिक पारी की शुरुआत करने वाले दिग्विजय सिंह जी ने 1971 में कांग्रेस की सदस्यता ली। फिर मध्यप्रदेश युवक कांग्रेस के महासचिव बने, मध्यप्रदेश कांग्रेस के सचिव रहे और इसी तरह कांग्रेस संगठन में छोटे-छोटे पदों पर काम करके सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़कर संगठन की बारीकियों को समझने वाले अनुभवी राजनेता बने। 1977 में जब जनता पार्टी की लहर में देश के बड़े-बड़े कांग्रेस नेता चुनाव हार गए तब दिग्विजय सिंह जी राघौगढ़ से छठवीं विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। 1980 में पुनः विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए एवं अर्जुन सिंह सरकार में सिंचाई, कृषि, मत्स्य पालन तथा पशुपालन विभाग के राज्यमंत्री रहे। 1984 में आठवीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नही देखा। ऐसा नही कि वे हर बार चुनाव जीते, 1989 में पहली बार उन्हें लोकसभा चुनाव में हार का मुंह भी देखना पड़ा लेकिन उनके हौंसले कभी पस्त नही हुए। उन्होंने हार को सबक बनाया और जीत हासिल करने वाले जज़्बे को कम नही होने दिया और वे पुनः 1991 में दसवीं लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए।

कम उम्र में किये गए उनके संघर्ष पर राजीव गांधी जी की पारखी नज़र पड़ी तो दिग्विजय सिंह को 37 वर्ष की उम्र में मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। उस वक़्त के राजनेता व पत्रकार बताते हैं कि दिग्विजय सिंह जी ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अविभाजित मध्यप्रदेश (यानि जो आज छत्तीसगढ़ राज्य है वो भी मध्यप्रदेश का हिस्सा था) जैसे बड़े प्रदेश को एक गाड़ी से नाप दिया था। हर गांव, हर ब्लॉक के खूब सघन दौरे किये और जिस विश्वास से राजीव गांधी जी ने दिग्विजय सिंह जी को मध्यप्रदेश की कमान सौंपी थी उस विश्वास पर खरे उतरते हुए उन्होंने भी राजीव गांधी जी की तर्ज़ पर मध्यप्रदेश में नए युवा नेताओं को तैयार किया। एक-एक विधानसभा में लोगों को चिन्हित करके चुनाव लड़वाया।

उनके ज़मीनी संघर्ष ने रंग दिखाया, 1993 में मध्यप्रदेश में काँग्रेस की सरकार बनी। उन्होंने 1993 का विधानसभा चुनाव नही लड़ा था, तो वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी नही थे लेकिन वो कहते हैं न भाग्य बहादुरों का साथ देता है जब कांग्रेस हाइकमान ने विधायकों से राय ली तब सबसे ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय सिंह जी को मुख्यमंत्री बनाने की सिफारिश की। वे 2 बार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के बाद मध्यप्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने।

भाजपा के नेता दिग्विजय सिंह सरकार को हमेशा निशाने पर रखते हैं लेकिन जब आप दिग्विजय सिंह सरकार के 10 साल के शासनकाल और भाजपा सरकार के 18 साल के शासनकाल की निष्पक्ष समीक्षा करेंगे तो आप पाएंगे कि जो कार्यों का श्रेय शिवराज सिंह चौहान आज तक ले रहे हैं वो सभी कार्यों की योजना व नींव दिग्विजय सिंह सरकार ने रखी थी।

शिक्षा को बढ़ावा देने मध्यप्रदेश के गांव-गांव में 26 हज़ार प्राथमिक शालायें बनवाईं, 52 हज़ार ग्राम सभाएं स्थापित की। प्राथमिक चिकित्सा केंद्र और सामुदायिक भवन बनाये जिनमें दिग्विजय सिंह सरकार द्वारा निर्माण किये जाने वाले शिलालेख आज भी लगे हुए हैं। ये और बात है कि उन प्राथमिक शालाओं और प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में भाजपा सरकार शिक्षकों और डॉक्टरों की पोस्टिंग नही कर पाई। बल्कि नियुक्तियां छोड़िए, भाजपा सरकार उन भवनों का रखरखाव तक नही कर पाई। सोचने वाली बात है दिग्विजय सिंह जी जिस दौर में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उनके दूसरे कार्यकाल में राज्य का विभाजन हुआ और पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बना। संसाधनों का बंटवारा हो गया और राज्य को वित्तीय संकट झेलना पड़ा। वह दिग्विजय सिंह की सूझ-बूझ और समझ थी जिसके कारण भारी वित्तीय संकट के बाद भी उनकी सरकार ने सराहनीय योजनाएं बनाई और उन पर काम करके मध्यप्रदेश के विकास को रास्ते पर लाने का काम किया।

वर्ष 2003 में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार नही बनी तो दिग्विजय सिंह जी ने अपनी बात पर कायम रहते हुए 10 साल के लिए मध्यप्रदेश की राजनीति से दूरी बना ली, केंद्र में कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार रहते हुए कभी लाभ के पद नही लिए। ऐसा दृढ़ संकल्प सामान्य नेताओं के बस की बात ही नही है। उन्होंने राजनीति में खुद के मानक और सिद्धांत बनाये और जीवन भर से उन सिद्धांतों पर अडिग रहकर आज भी चल रहे हैं। वे उत्तरप्रदेश सहित कई राज्यों के प्रभारी महासचिव रहे और जहां-जहां वे प्रभारी रहे वहां-वहां कांग्रेस के वोट प्रतिशत में पहले की तुलना में इज़ाफ़ा ही हुआ। वे जब उत्तरप्रदेश के प्रभारी थे तब कांग्रेस 22 संसदीय सीटें जीती थीं ये उनकी कार्यकुशलता का प्रमाण था। 2014 में उन्हें मध्यप्रदेश से संसद के उच्च सदन राज्यसभा भेजा गया।

2017 में दिग्विजय सिंह जी द्वारा खुद के लिए की गई 3100 किलोमीटर की आध्यात्मिक पद यात्रा “नर्मदा परिक्रमा” कांग्रेस के लिए टर्निंग पॉइंट बनी और मध्यप्रदेश में जब लोग काँग्रेस को चुनावी प्रतिस्पर्धा में गंभीर नही मान रहे थे तब दिग्विजय सिंह जी की पैदल नर्मदा परिक्रमा से कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना जिससे अचानक से 2018 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, भाजपा को तगड़ी टक्कर देने वाली पार्टी बन गई। उसके बाद कांग्रेस नेताओं के सामूहिक प्रयास से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी।

कोरोना के वीभत्स काल में जब लोग अपने घरों से नही निकल रहे थे तब दिग्विजय सिंह जी अपनी जान की परवाह किये बगैर भोपाल में लोगों को खाना, कच्चा अनाज व राशन मुहैया करा रहे थे। जो मजदूर नँगे पैर पैदल अपने क्षेत्रों को जा रहे थे उन लोगों को अपने हाथों से चप्पल पहनाकर, भोजन करवाकर भोपाल से विदा किया। मध्यप्रदेश के लोग जो अन्य राज्यों में फंसे हुए थे उन्हें वापस बुलाने के लिए उन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ पत्राचार किया, फोन पर बात की और फंसे लोगों को वाहन उपलब्ध करवाकर सकुशल मध्यप्रदेश में उन्हें उनके घरों तक पहुंचाने का काम किया गया। वास्तव में दिग्विजय सिंह जी ने राजनीति को जनसेवा का सशक्त माध्यम बनाया। हर मुसीबत में, हर परिस्थिति में जनता के साथ खड़े रहना ही तो जनप्रतिनिधि की असली पहचान है।

दिग्विजय सिंह की कांग्रेस विचारधारा के प्रति अटूट निष्ठा और समर्पण की वजह से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने हमेशा उन पर विश्वास जताया। जनता की आवाज़ को संसद में प्रभावशाली ढंग से उठाने के लिए उन्हें पार्टी ने 2020 में पुनः राज्यसभा का सदस्य बनाया। दिग्विजय सिंह जी के दीर्घ राजनैतिक अनुभव को देखते हुए श्रीमती सोनिया गांधी जी ने वर्ष 2021 में उन्हें महंगाई के ख़िलाफ़ जन जागृति लाने के लिए कांग्रेस के जन जागरण अभियान का राष्ट्रीय प्रभारी नियुक्त किया। दिग्विजय सिंह जी ने अपनी शैली के अनुसार जन जागरण अभियान के माध्यम से समूचे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से महात्मा गांधी के भजनों के साथ प्रभात फेरियां निकलवाई। ग्रामीण क्षेत्रों में चौपालें लगाईं गईं और जन जागरण को मास मूवमेंट बनाने का कारगर काम किया गया। जन जागरण अभियान ने कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया और देश भर के कांग्रेस कार्यकर्ता सड़कों पर दिखने लगे। दिग्विजय सिंह जी की दूरदृष्टि व कुशल मार्गदर्शन से जन जागरण अभियान सफलतम साबित हुआ।

इसमें कोई दो राय नही है कि दिग्विजय सिंह ने सतत संघर्ष से अपनी राजनैतिक ज़मीन तैयार की है। ज़मीनी संघर्ष के प्रभाव को समझने वाले पूर्व सीएम हर युवा को एक ही सीख देते हैं गाड़ी-घोड़ा छोड़ो और अपने चुनावी क्षेत्रों में पैदल घर-घर जाओ, जनता से रूबरू होकर उन्हें सच्चाई से अवगत कराओ। निश्चित ही जनता से संपर्क बनाये रखने के लिए पदयात्रा, एक अचूक उपाय है। दिग्विजय सिंह जी की लोगों को जोड़ने की इसी क्षमता व पदयात्रा के अनुभव को देखते हुए श्रीमती सोनिया गांधी जी ने एक बार फिर बड़ी चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए उन्हें राहुल गांधी जी की 4000 किलोमीटर की देशव्यापी भारत जोड़ो पद यात्रा का प्रभारी बनाया। देखते ही देखते भारत जोड़ो यात्रा ने वो कर दिखाया जो कई सालों से कांग्रेस के लिए ज़रूरी था। एक ऐसा कदम जिसके माध्यम से देश में फैले नफरत के दूषित वातावरण को साफ कर प्रेम और भाईचारे का संदेश घर-घर पहुंचाना था। भारत जोड़ो यात्रा का असर इतना हुआ कि यात्रा के दौरान लाखों लोग उससे जुड़े।

भाजपा-आरएसएस जो राहुल गांधी जी की छवि बिगाड़ने का दीर्घकाल से कुत्सित प्रयास कर रहे थे, उसे इस यात्रा के दौरान जनता ने जान लिया और राहुल जी पर भरपूर प्यार लुटाया। भारतीय जनता पार्टी द्वारा राहुल गांधी जी के खिलाफ रचे गए झूठ और दुष्प्रचार एक ही झटके में धड़ाम से औंधे मुंह गिर गए।

दिग्विजय सिंह बहुत ही संवेदनशील राजनेता हैं। राहुल जी के साथ जो भारत यात्री पैदल चल रहे थे उनमें से कुछ ने बताया कि दिग्विजय सिंह जी ने पूरी यात्रा में एक अभिभावक की तरह अपनी भूमिका निभाई, एक-एक भारत यात्री का व्यक्तिगत रूप से ख्याल रखा। भारत यात्री अंशुल त्रिवेदी ने बताया कि आम तौर पर दिग्विजय सिंह जी यात्रा के आगे सेवादल की टुकड़ी के साथ चलते थे लेकिन जैसे ही यात्रा कश्मीर पहुंची, यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपनी मानकर वे पीछे चलने लगे और सभी यात्रियों को एक साथ चलने का कहते, उन्हें सबकी सुरक्षा की इतनी चिंता थी कि कभी-कभी डांट भी लगा देते थे। ये भाव, ये अपनापन यही दिग्विजय सिंह जी का असली पहचान है।

कभी कभी लगता है कि “दिग्विजय सिंह” निरंतर चलते रहने का नाम है, उनके विचार इस गाने के बोल से खूब मेल खाते हैं “रुक जाना नही तू कहीं हार के, कांटों पे चलकर मिलेंगे साये बहार के। ओ राही, ओ राही, ओ राही, ओ राही…!”

28 फरवरी को जनता के वास्तविक प्रतिनिधि, कांग्रेस कार्यकर्ताओं के अभिभावक मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राज्यसभा सांसद श्री दिग्विजय सिंह का जन्मदिवस है, हम उन्हें इस अवसर पर बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं। भगवान से प्रार्थना है कि वे स्वस्थ व निरोगी रहें और अनन्त काल तक जनसेवा के कार्यों में अपना समय व्यतीत करें।

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