मध्यप्रदेश राजगढ़

एससी/एसटी एकता महासंघ मध्यप्रदेश शासन से बात रखेगी कि दोनों वर्गों के महान क्रांतिकारी को शहीद का दर्जा अभी क्यों नहीं जबकि अमृत महोत्सव मन चुका : वर्मा


राजगढ़। अनुसूचित जाति/जनजाति संयुक्त एकता महासंघ मध्यप्रदेश के संस्थापक एवं प्रदेश अध्यक्ष श्री जगदीश वर्मा ने प्रेम वार्ता देते हुए बताया है कि, मध्यप्रदेश की नव निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री एवं मंत्रीयों से महासंघ का एक प्रतिनिधिमण्डल सूबे के नये मुख्यमंत्री श्री मोहन यादव जी से महासंघ की एस सी/एस टी की प्रमुख समस्याओं को लेकर, उनकी योजनाओं को प्रदेश में तत्काल प्रभाव से लागू करने, अत्याचार और अन्याय पीड़ित व्यक्ति के साथ बार बार की घटनायें सामने आ रही है। जिनकी शक्ति से रोक व सक्त कानूनी प्रणाली अपनाई जाये। जिससे अनुसूचित जाति व जनजातियों के साथ प्रताड़ना की घटनाओं की पुनःरावृति न हो


महासंघ मध्यप्रदेश के प्रमुख श्री वर्मा ने सभी सामाजिक संगठनों में काम कर रहे लोगों को भी एकजुट कर रहे है। वह दिनांक 11 फरवरी 2024 को विशाल महासंघ की बैठक बुलाई है। “जिसमें मध्यप्रदेश का एक मुद्दा बहुत बडे़ स्तर पर बुलंदी से अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों में छाया हुआ है कि मध्यप्रदेश में आजादी का आंदोलन जब गांधीजी के नेतृत्व में चलाया जा रहा था। तभी अंग्रेजी सेना नरसिंहपुर मध्यप्रदेश की तहसील गाडरवारा के नगर चीचली गोंड राजा के राजमहल को लुटने के उद्देश्य से आ धमकी। तब महान स्वतंत्रता सेनानी मनीराम अहिरवार जी राजमहल की सुरक्षा व्यवस्था में थे। तभी वह महल को कब्जा करने आ गयें। जिन्हें मनीराम जी ने बहुत रोका की यह महल में राजा साहब जी नहीं है। तुम यहाँ नहीं आ सकतें है। वह आगे बढे़ तो मनीराम जी ने युद्ध करने को चेतावनी देकर महल के सामने मैदान में आ गयें। अंग्रेजी सेना और मनीराम अहिरवार जी के आमने सामने भीषण युद्ध हुआ। जिसमें दो एक मंशाराम जसाटी जी वह एक गौरादेवी कतिया नामक युवती की शहादत हुई


हमारे अनुसूचित जाति के वीर बहादुर मनीराम अहिरवार जी जो कि श्री मूलचन्द मेधोनिया जी के दादा जी थे। उन्होंने युद्ध कौशल के प्रवीण जानकर व पहलवान थे। उन्होंने अंग्रेजी सेना के रण में छक्के छुड़ा दिये एवं रक्त रंजिश कर गांव से खदेड़ कर अनुसूचित जाति व जनजाति वर्गों के और देश की आजादी के मतवाले की नेक राह पर विजय श्री हासिल की। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इनके युद्ध में जो मारे गये उन्हें शहीद बनाया गया और मनीराम अहिरवार जी के साथ भेदभाव कर उन्हें शहीद क्या सेनानी तक घोषित नहीं किया गया है। इस मामले पर अभी तक शहीद परिवार के उत्तराधिकारी मूलचन्द अकेले अपने परिवार को साथ लेकर लम्बे समय से संघर्ष कर रहे थे। आज समूचा अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों के सामाजिक संगठनों का सहयोग प्राप्त हो रहा है। महासंघ के द्वारा बुराई जा रही महत्वपूर्ण बैठक में इस विषय पर कोई ठोस रणनीति तय होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री से सबसे पहले मिला जायेगा फिर आगे की चरणबद्ध जन आंदोलन का भी निर्णय लिये जाने की संभावना है

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