खेल देश-विदेश नई दिल्ली

खेल मंत्रालय ने नए कुश्ती संघ को किया सस्पेंड, संजय सिंह समेत निर्वाचित टीम निलंबित।

कबीर मिशन समाचार
नई दिल्ली

हाल ही में दो बड़ी घटना देखने को मिली है जिसमें साक्षी मलिक का कुश्ती से सन्यास लेना साथ ही बजरंग पूनिया का पदम् श्री अवार्ड प्रधानमंत्री को वापस करने का निर्णय। इन सबके बीच आज बड़ी खबर निकलकर सामने आई है जिसमें खेल मंत्रालय ने नव निर्वाचित कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया गया है।

साक्षी मलिक ने पिछले दिनों बड़ी घोषणा करते हुए कुश्ती से सन्यास का ऐलान किया। साक्षी ने रोते हुए कहा कि, लड़ाई लड़ी पूरे दिल से लड़ी लेकिन अगर प्रेसिडेंट ब्रजभूषण जैसे आदमी जैसा ही रहता है जो उसका बिलकुल सहयोगी है बिजनेस पार्टनर है वो अगर इस फेडरेशन में रहेगा। तो मैं अपनी कुश्ती को त्यागती हूं और आज के बाद आपको कभी भी वहाँ नही दिखूंगी। सभी देशवासियों को धन्यवाद आज तक मेरा इतना सपोर्ट किया। मैंने देश के लिए जितने भी पुरस्कार जीते हैं आप सब के आशीर्वाद से जीते हैं , मैं आप सभी देशवाशियों की हमेशा आभारी रहुंगी। कुश्ती को अलविदा और अंत मे रोते हुये निकल गई।

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आखिर क्या कारण रहा होगा कि साक्षी को कुश्ती को त्यागने का फैसला लेना पड़ा। क्या राजनीति इतनी ताक़तवर है कि जो बेटियां देश के लिए मेडल जीत कर आती है। उन्हें अपने लिए न्याय की लड़ाई सड़कों पर लड़नी पड़ती है। फिर भी सरकार द्वारा किसी प्रकार से कोई मदद नहीं की जाती है। एक व्यक्ति जिस पर गंभीर आरोप देश के लिए अलग अलग प्रतियोगिता के माध्यम से मैडल जीत कर लाती है देश का सम्मान बढ़ाती है। उन्हें ये दिन देखना पड़ रहे हैं। निश्चित ही मानवता का भयावह रूप इन राजनीतिक लोगों के माध्यम से देखने को मिल रहा है। ऐसा लगता है, कि माननीय न्यायाधीशों को संज्ञान लेने की आवश्यकता है।

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कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा है, कि ये आंसू मोदी सरकार की देन हैं। देश की बेटी साक्षी मलिक न्याय मांग रही थी। सरकार के तमाम लोगों से मिली, धरना दिया, लाठियां खाईं और आज इतना मज़बूर हो गई कि सन्यास ले लिया। दुर्भाग्य की बात है… देश-विदेश में अपनी ताकत का लोहा मनवाने वाली देश की बेटी आज कह रही है- मैं हार गई।

बजरंग पूनिया ने पत्र लिखकर प्रधानमंत्री को पद्मश्री अवार्ड वापस करने का फैसला लिया जिसमें उन्होंने लिखा था,कि
माननीय प्रधानमंत्री जी,

उम्मीद है कि आप स्वस्थ होंगे. आप देश की सेवा में व्यस्त होंगे. आपकी इस भारी व्यस्तता के बीच आपका ध्यान हमारी कुश्ती पर दिलवाना चाहता हूं. आपको पता होगा कि इसी साल जनवरी महीने में देश की महिला पहलवानों ने कुश्ती संघ पर काबिज बृजभूषण सिंह पर सेक्सुएल हरासमैंट के गंभीर आरोप लगाए थे, जब उन महिला पहलवानों ने अपना आंदोलन शुरू किया तो मैं भी उसमें शामिल हो गया था. आंदोलित पहलवान जनवरी में अपने घर लौट गए, जब उन्हें सरकार ने ठोस कार्रवाई की बात कही. लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी जब बृजभूषण पर एफआईआर तक नहीं की तब हम पहलवानों ने अप्रैल महीने में दोबारा सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया ताकि दिल्ली पुलिस कम से कम बृजभूषण सिंह पर एफआईआर दर्ज करे, लेकिन फिर भी बात नहीं बनी तो हमें कोर्ट में जाकर एफआईआर दर्ज करवानी पड़ी. जनवरी में शिकायतकर्ता महिला पहलवानों की गिनती 19 थी जो अप्रैल तक आते आते 7 रह गई थी, यानी इन तीन महीनों में अपनी ताकत के दम पर बृजभूषण सिंह ने 12 महिला पहलवानों को अपने न्याय की लड़ाई में पीछे हटा दिया था. आंदोलन 40 दिन चला. इन 40 दिनों में एक महिला पहलवान और पीछे हट गईं.

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हम सबपर बहुत दबाव आ रहा था. हमारे प्रदर्शन स्थल को तहस नहस कर दिया गया और हमें दिल्ली से बाहर खदेड़ दिया गया और हमारे प्रदर्शन करने पर रोक लगा दी. जब ऐसा हुआ तो हमें कुछ समझ नहीं आया कि हम क्या करें. इसलिए हमने अपने मेडल गंगा में बहाने की सोची. जब हम वहां गए तो हमारे कोच साहिबान और किसानों ने हमें ऐसा नहीं करने दिया. उसी समय आपके एक जिम्मेदार मंत्री का फोन आया और हमें कहा गया कि हम वापस आ जाएं, हमारे साथ न्याय होगा. इसी बीच हमारे गृहमंत्री जी से भी हमारी मुलाकात हुई, जिसमें उन्होंने हमें आश्वासन दिया कि वे महिला पहलवानों के लिए न्याय में उनका साथ देंगे और कुश्ती फेडरेशन से बृजभूषण, उसके परिवार और उसके गुर्गों को बाहर करेंगे. हमने उनकी बात मानकर सड़कों से अपना आंदोलन समाप्त कर दिया, क्योंकि कुश्ती संघ का हल सरकार कर देगी और न्याय की लड़ाई न्यायालय में लड़ी जाएगी, ये दो बातें हमें तर्कसंगत लगी.

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लेकिन बीती 21 दिसंबर को हुए कुश्ती संघ के चुनाव में बृजभूषण एक बार दोबारा काबिज हो गया है. उसने स्टेटमैंट दी कि “दबदबा है और दबदबा रहेगा.” महिला पहलवानों के यौन शोषण का आरोपी सरेआम दोबारा कुश्ती का प्रबंधन करने वाली इकाई पर अपना दबदबा होने का दावा कर रहा था. इसी मानसिक दबाव में आकर ओलंपिक पदक विजेता एकमात्र महिला पहलवान साक्षी मलिक ने कुश्ती से सन्यास ले लिया. हम सभी की रात रोते हुए निकली. समझ नहीं आ रहा था कि कहां जाएं, क्या करें और कैसे जीएं. इतना मान-सम्मान दिया सरकार ने, लोगों ने. क्या इसी सम्मान के बोझ तले दबकर घुटता रहूँ. साल 2019 में मुझे पद्मश्री से नवाजा गया. खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. जब ये सम्मान मिले तो मैं बहुत खुश हुआ. लगा था कि जीवन सफल हो गया. लेकिन आज उससे कहीं ज्यादा दुखी हूं और ये सम्मान मुझे कचोट रहे हैं. कारण सिर्फ एक ही है, जिस कुश्ती के लिए ये सम्मान मिले उसमें हमारी साथी महिला पहलवानों को अपनी सुरक्षा के लिए कुश्ती तक छोड़नी पड़ रही है. खेल हमारी महिला खिलाड़ियों के जीवन में जबरदस्त बदलाव लेकर आए थे. पहले देहात में यह कल्पना नहीं कर सकता था कि देहाती मैदानों में लड़के-लड़कियां एक साथ खेलते दिखेंगे.

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लेकिन पहली पीढी की महिला खिलाड़ियों की हिम्मत के कारण ऐसा हो सका. हर गांव में आपको लड़कियां खेलती दिख जाएंगी और वे खेलने के लिए देश विदेश तक जा रही हैं. लेकिन जिनका दबदबा कायम हुआ है या रहेगा, उनकी परछाई तक महिला खिलाड़ियों को डराती है और अब तो वे पूरी तरह दोबारा काबिज हो गए हैं, उनके गले में फूल-मालाओं वाली फोटो आप तक पहुंची होगी. जिन बेटियों को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की ब्रांड अंबेसडर बनना था उनको इस हाल में पहुंचा दिया गया कि उनको अपने खेल से ही पीछे हटना पड़ा. हम “सम्मानित” पहलवान कुछ नहीं कर सके. महिला पहलवानों को अपमानित किए जाने के बाद मैं “सम्मानित” बनकर अपनी जिंदगी नहीं जी पाउंगा. ऐसी जिंदगी कचोटेगी ताउम्र मुझे. इसलिए ये “सम्मान” मैं आपको लौटा रहा हूं.

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