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शराब पीकर महापुरुषो, संतों की जयंती मनाना क्या उचित है यहां आपको स्वयं को सोचना चाहिए

नशा करके आयोजन में होते हैं शामिल फटी पेंट शर्ट में रौब बादशाह जैसा करते हैं विवाद

आज कल युवा पीढ़ी में नशा करना कोई शौक नहीं बल्कि एक फ़ैशन सा बनता जा रहा है। कोई नशा नहीं करता है तो उसे चिढ़ाते हैं बोलते हैं मजाक तक उड़ाते हैं। पहले नशा नहीं करने वाले अपनी जिंदगी में मस्त थे और दिनचर्या में रहते है लेकिन आज समय इतना बदल गया की यदि दारू नहीं पी तो जीवन में क्या किया।

खैर इस लेख के माध्यम से मुझे एक कटू सत्य बात रखना है लेकिन इसका अर्थ तात्पर्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है यह वहां सत्य है कल 25 फरवरी 2024 के दिन रविदास जयंती समारोह में कई स्थानों पर देखने को मिला है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग में ज्यादातर समाज शराब को एक रूटीन का सेवन मानते हैं मानो यदि दारू नहीं मिली तो मर ही जाएंगे। कल रविदास जयंती पुरे देश में मनाई गई और कई जगह पर विवाद की खबरें भी सामने आई। कहीं आपस में तो कहीं अन्य लोगों के साथ?

शराब पीकर ऐसे पवित्र सामाजिक कार्यक्रम में आते हैं और रौब झाड़ने लगते हैं मानो सारा पैसा इसने ही खर्च किया है और सब इसकी ही बात मानते हैं और यदि किसी ने टोक दिया तो फिर बात इज्जत पर आ जाती है बस फिर क्या था महाभारत चालू और और और क्या आपने भी तो ऐसा दृश्य देखा होगा?

ऐसे ही कबीर भजन संध्या के रात्रि कार्यक्रम में भी देखने को मिलता है। दलित वर्ग के कुछ लोग ऐसे पवित्र मौके पर भी अछुते नहीं रहते हैं। इसमें कुछ समझदार लोग भी रहते हैं और मंचों से ज्ञान देते हैं। हमारा इस लेख को लिखने मात्र का उद्देश्य इतना है कि समाज में ऐसे लोगों को चिंहित करना चाहिए और एकत्रित होकर समझाना चाहिए। धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में इस तरह नशा करके नहीं आना चाहिए। आज हम लोग कहते हैं कि हम गरीब है पैसा नहीं लेकिन पैसा होने के बावजूद भी ज्यादातर पैसा नशे में बर्बाद कर देते हैं। इस नशे की आदत में पहले एक अशिक्षित और मजदूर वर्ग के लोग ही शामिल थे लेकिन आज एक पढ़ी-लिखी पीढ़ी पैक पर पैक और बीड़ी जला रहें हैं। इसमें भी सबसे विशेष चिंतन का विषय यहां है कि नौकरी वाले भी इसके सेवन से बचें नहीं है।

हम पीते कम और बदनाम ज्यादा होते हैं। इसका कारण है ग़लत जगह और ग़लत समय और दोनों ही चीजें जीवन में बर्बादी का कारण है। हम उन लोगों की बात कर रहे हैं जो समाज में समझदार है, दिखते हैं, होते हैं रहते हैं आदि और जो महापुरुषो की बात करते हैं जय भीम बोलते हैं, बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर का चोला ओढ़कर चलते हैं। बहुजन समाज में सक्रिय भूमिका रखने वाले लोग भी शामिल हैं। इसलिए हमें अपने खान-पान का तरीका बदलना होगा। इसका बताने का मात्र एक ही उद्देश्य है कि ग़लत जगह और ग़लत समय पर कोई भी काम करेंगे तो परिणाम ग़लत ही आएंगे। शराब पीकर महापुरुषो, संतों की जयंती मनाना क्या उचित है यहां आपको स्वयं को सोचना चाहिए। धन्यवाद, रामेश्वर मालवीय पत्रकार

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