समाज सीहोर

आज किया जाएगा कन्याओं का पूजन और हवन का समापन।

कबीर मिशन समाचार जिला सीहोर।
सिहोर से संजय सोलंकी कि रीपोर्ट 9691163969।
सीहोर। हर साल की तरह इस साल भी शहर के विश्रामघाट मां चौसट योगिनी मरीह माता मंदिर में गुप्त नवरात्रि का पर्व आस्था के साथ मनाया जाएगा। लगातार आठ दिवस से माता की विधि-विधान से यहां पर उपस्थित साधकों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा अर्चना की जा रही है। वहीं शनिवार को अष्टमी के दिन मंदिर के व्यवस्थापक रोहित मेवाड़ा, गोविन्द मेवाड़ा सहित अन्य ने मां का विशेष श्रृंगार किया। अब रविवार को मंदिर परिसर में कन्याओं का पूजन और हवन का समापन किया जाएगा।

शनिवार को पंडित उमेश दुबे सहित अन्य विप्रजनों की उपस्थिति में हवन का आयोजन किया गया था। इसके पश्चात आरती का आयोजन किया गया और मां गौरी का आह्वान किया गया। श्री मेवाड़ा ने बताया कि हर साल मंदिर में चारों नवरात्रि का आयोजन किया जाता है और यहां पर मासिक दुर्गाष्टमी भी मनाई जाती है। नवरात्रि के अलावा हर माह की दुर्गाष्टमी खास होती है। दुर्गाष्टमी के दिन व्रत रखा जाता है और मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ जो कोई भी व्यक्ति मां दुर्गा की उपासना करता है, मां दुर्गा उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।

गुप्त नवरात्रि के आंठवे दिवस श्रद्धालुओं के द्वारा मां महागौरी की पूजा की गई। पंडित श्री दुबे ने बताया कि महागौरी के वस्त्र और आभूषण सभी सफेद हैं। इसलिए मां को सफेद रंग प्रिय है, पूजा में भी मां को सफेद चीजें और भोग अर्पित किए जाते हैं। सफेद रंग प्रिय होने के कारण इन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है. मां का वाहन वृषभ है और इनकी चार भुजाएं हैं. ऊपर वाले दाहिने हाथ में अभय मुद्रा है और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में मां ने डमरू धारण किया है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है, मां की पूरी मुद्रा बहुत शांत है।

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति मां महागौरी की पौराणिक कथा के अनुसार, मां ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की। तपस्या के दौरान मां हजारों वर्षों तक निराहार रहीं, जिस कारण इनका शरीर काला पड़ गया था। जब मां की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए तो उन्होंने मां को पत्नी के रूप में स्वीकार किया और इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर अत्यंत कांतिमय बना दिया, जिस कारण इनका काला रंग गौर वर्ण जैसा हो गया। इसके बाद मां पार्वती के इस स्वरूप को महागौरी के नाम से जाना गया।

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