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मैं लिखूं एक अनकही कहानी जिसकी सृष्टि जैसी है वो वह सृष्टि नहीं नारी है!

समय की अनकही कहानी
नारी शक्ति को नमन

मैं लिखूं एक अनकही कहानी जिसकी सृष्टि जैसी है वो वह सृष्टि नहीं नारी है!

जिसने जीवन जन्म दिया ममता मूर्त है
सृष्टि की रचना ये नारी की निशानी है!

पानी जेसी शीतल सरल शांत वो है
उनका मुकाबला आग की लपटों से है!

मोम तो कभी ज्वाला बन धधकती है नदियां तो कभी हवा बन बहती वो हैं!

अम्बर तो कभी पृथ्वी बन आश्रे देती हैं आसमा बन कर सारा संसार ढकती हैं!

चुनौतियों को स्वीकार करती वो
अनंत ऊंचाइयों की उड़ान भर्ती है !

विफलता से कभी ना डगमगाती वो
घर की जिम्मेदारी, सफलता साधती हैं!

प्रकृति का वरदान सृष्टि की छवि वो
प्रलय,निर्माण नारी पर निर्भर करता है!

ख्वाबों की बनी दुनिया तोड़कर वो हकीकत के आसमा को चूमती नारी है!

मारियाना की गर्त से लेकर चांद तक
गरिमा मय झंडा लहरा रही नारी है !

अपराजित हो नारी शक्ति शतक से तुम
इतिहास संघर्षरत गौरव सिद्धि दर्ज कराई है!

स्वाभिमान पर आंच आए देख तुम
अकेली सब पे भारी, कभी नहीं हारी है!

माना बेटे होते हैं घर के चिराग फिर भी उजियारा कर दिखाया नारियों तुमने है

क्या उपमा नारी को दूं उन्होंने तो खुद ममतामय रूप में मेरी रचना गड़ी है !
पूजा मालवीय

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