कबीर मिशन समाचार जिला सीहोर।संजय सोलंकी की रिपोर्ट।
पत्रकारिता की निष्पक्षता एक जटिल और बहस का विषय है, जो समय, स्थान और संदर्भ पर निर्भर करता है। वर्तमान
समय में, कई लोग मानते हैं कि पत्रकारिता पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रह गई है, क्योंकि यह विभिन्न कारकों से प्रभावित होती है जैसे कि मीडिया हाउस के मालिकों के हित, राजनीतिक दबाव, आर्थिक लाभ, और दर्शकों की पसंद। सोशल मीडिया के युग में, समाचारों की गति और सनसनीखेज प्रस्तुति ने भी निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं।हालांकि, कुछ पत्रकार और संस्थान
अभी भी तथ्यों को सटीक और संतुलित ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। भारत में, उदाहरण के लिए, कई मीडिया चैनल और अखबार अपनी विचारधारा (बाएं या दाएं) की ओर झुकाव रखते हैं, जो उनके समाचार चयन और प्रस्तुति में दिखता है। फिर भी, स्वतंत्र पत्रकार और डिजिटल प्लेटफॉर्म निष्पक्षता
की दिशा में प्रयास कर रहे हैं, हालांकि उनकी पहुंच और प्रभाव सीमित हो सकता है।पत्रकारों का दो धड़ों में विभाजित होना चिंता का विषय ।पत्रकारों का दो धड़ों में बटना एक वैश्विक और ऐतिहासिक चिंता का विषय है, जो कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारणों से जुड़ा है। भारत के संदर्भ में इसे समझने
के लिए निम्नलिखित कारण प्रमुख हैं:राजनीतिक ध्रुवीकरण: समाज और राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण का असर पत्रकारिता पर भी पड़ता है। जब राजनीतिक दल या विचारधाराएं (जैसे वामपंथी और दक्षिणपंथी) एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होते हैं, तो पत्रकार भी अक्सर इनमें से किसी एक पक्ष का समर्थन करने लगते हैं।
भारत में, कुछ मीडिया हाउस सत्ताधारी दल के पक्ष में दिखते हैं, तो कुछ विपक्ष के, जिससे पत्रकारों का बंटवारा स्पष्ट हो जाता है।मालिकाना हक और हित: बड़े मीडिया समूहों के मालिकों के व्यावसायिक और राजनीतिक हित पत्रकारों की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं। अगर कोई मीडिया हाउस किसी खास पार्टी या कॉर्पोरेट समूह से जुड़ा है
, तो वहां काम करने वाले पत्रकारों पर उस एजेंडे को आगे बढ़ाने का दबाव हो सकता है। इससे दो अलग-अलग नैरेटिव बनते हैं।वैचारिक मतभेद: पत्रकार भी इंसान हैं और उनकी अपनी निजी मान्यताएं होती हैं। कुछ पत्रकार सामाजिक न्याय और उदारवादी मूल्यों को बढ़ावा देना चाहते हैं,
जबकि कुछ परंपरा और राष्ट्रवादी विचारों को प्राथमिकता देते हैं। ये मतभेद उनके काम में झलकते हैं और धड़े बन जाते हैं।सोशल मीडिया का प्रभाव: आज के दौर में, सोशल मीडिया ने पत्रकारों को अपनी राय खुलकर व्यक्त करने का मंच दिया है। इससे उनकी पक्षधरता और स्पष्ट हो गई है,
और लोग उन्हें “प्रोग्रेसिव” या “कंजर्वेटिव” जैसे खांचों में बांटने लगे हैं।दर्शकों की मांग: पत्रकारिता अब सिर्फ सूचना देने तक सीमित नहीं है; यह एक व्यवसाय भी है। दर्शक या पाठक जिस तरह की खबरें चाहते हैं (सनसनीखेज, पक्षपातपूर्ण, या भावनात्मक), उसी के हिसाब से पत्रकारों को काम करना पड़ता है,
जिससे दो धड़े और मजबूत होते हैं।उदाहरण के तौर पर, भारत में टीवी डिबेट्स को देखें—एक तरफ कुछ पत्रकार सरकार की नीतियों की तारीफ करते हैं, तो दूसरी तरफ कुछ हर कदम पर सवाल उठाते हैं। यह बंटवारा सिर्फ पत्रकारों का नहीं, बल्कि समाज के विभाजन का भी प्रतिबिंब है।आपके हिसाब से क्या यह बंटवारा पत्रकारिता की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रहा है या यह लोकतंत्र के लिए जरूरी है?