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तमाम बहुजन वर्ग के संगठन, पार्टी के आका अपने घमंड और बड़े नाम में मस्त हैं ? part-2

लेख- बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने पार्टी बनाई, संगठन बनाएं, मीडिया भी चलाया। मान्यवर कांशीराम साहब ने भी संगठन बनाया, पार्टी बनाई, पेपर भी चलाया और वहां सभी काम किए जो वे इस बहुजन समाज के लिए कर सकते थे। मैंने एक लेख में बहुजन समाज पार्टी के बारे में लिखा है और आज आप सभी वाकिफ हैं। बाबा साहब अम्बेडकर से लेकर मायावती जी तक का दौर आफलाइन रहा है। अब डिजिटल जमाने का दौर जारी है।

बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर के नाम पर देश में लाखों संगठन बने हुए हैं और आज गली गली में अम्बेडकर के संगठन खड़े हो गए हैं लेकिन किसी के पास भी रिति नीति नहीं है और न ही नियत है। ये सभी संगठन बाबा साहब अम्बेडकर का फोटो और नाम का केवल अपने स्वार्थ के लिए उपयोग कर रहे हैं। जय भीम के जोर जोर से नारे लगाते हैं। गलियों में नेता बने घुमते है। अपने आप को अम्बेडकर का बड़ा फालोवर बताते हैं। समाज बाबा साहब अम्बेडकर और मान्यवर कांशीराम साहब के त्याग के आगे नतमस्तक है और वे उनसे एक नई आशा से साथ जुड़ जाते हैं। सन् 2012 के बाद से डीजीटल दुनिया होने लगी थी।

देश में मोबाइल क्रांति लाई थी और धीरे धीरे सोशल मीडिया का इस्तेमाल आज इतना हो गया कि एक घर में चार चार मोबाइल फोन मिलेंगे। खैर 2015-2018 के बीच की बात करते हैं। सोशल मीडिया पर बहुजन समाज से जुड़े महापुरुषों का इतिहास और फोटो आना शुरू हो गया और एससी एसटी वर्ग का पढ़ा लिखा युवा जो सालों से दबी जुबान को लिखने की ताकत मिली। एक ही विचारधारा के लोग जुड़ते गए और देश में होनी वाली घटनाओं को देखकर अंदर से आग भड़कने लगी और इसी दौर में भीम आर्मी नाम का संगठन उभर कर सामने आया। 20 साल बाद यह सोई हुई समाज फिर सड़कों पर एकसाथ दिखाई दी।

2 अप्रैल 2018 को इस वर्ग ने इतिहास के पन्नों पर अमिट छाप छोड़ दी। इससे विरोधीयों को फिर से पसीने आने लगें। भीम आर्मी चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में पहुंच लगातार उंचाई पर जा रही थी। गांव गांव में भीम आर्मी की पहुंच हो गई। चंद्रशेखर आजाद ने अपने भाषणों में हमेशा मान्यवर कांशीराम साहब का नाम आगे रखा और उनकी बातों को दोहराते हुए सोशल मीडिया और मीडिया में सुर्खियां बटोरी है। देश विदेश में फालोअर बन गए हर कोई चंद्रशेखर आजाद से मिलने कि ललक रखने लगा, बड़े बड़े नेता चंद्रशेखर आजाद के सामने छोटे दिखने लगें थें। वहीं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती जी ने कभी चंद्रशेखर आजाद को हवा नहीं दी। दोनों देश में बड़े नाम है। लेकिन दोनों में कभी कोई तालमेल नहीं बैठा और चंद्रशेखर आजाद ने हमेशा राजनीति से दूर रहने की बात कही थी लेकिन वे ज्यादा देर तक अपनी बात पर कायम नहीं रह सकें और उन्होंने भीम आर्मी की अपनी राजनीतिक शाखा आजाद समाज पार्टी बना ली और 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में दावेदारी की लेकिन एक सीट भी नहीं आई और खुद बुरी तरह से हार गए जो बंद मुट्ठी लाख की थी वहां खाक की हो गई।

भीम आर्मी को राजनैतिक रूप देने के बाद कई लोग संगठन छोड़ कर चले गए। ऊपर से लेकर नीचे तक कार्यकर्ताओं में तालमेल नहीं बैठा पाए। राजनैतिक पार्टी बनने के बाद बीएसपी सहित समाज के अन्य लोगों ने समर्थन करना बंद कर दिया। कई युवा साथी ने संगठन छोड़ दिया। संगठन और पार्टी में मतभेद शुरू हो गए, संगठन को एक तरह से घमंड़ आ गया है और वही नहीं तमाम बहुजन वर्ग के संगठन, पार्टी के आका अपने घमंड और बड़े नाम में मस्त हैं।

ये सभी संगठन चाहे वो, बीएसपी, भीम आर्मी, बामसेफ, आरपीआई, गोड़वाना, जयस, समाजवादी पार्टी, बहुजन वंचित अघाड़ी आदि कोई भी हो सब बाबा साहब अम्बेडकर, मान्यता काशीराम साहब सहित अन्य तमाम महापुरुषों की बात करते हैं लेकिन कोई भी बाबा साहब अम्बेडकर का पहला मंत्र संगठित रहो को नहीं अपना रहा है। सभी अपनी अपनी पार्टी व दल बनाकर बैठे हैं कोई भी न तो एक दुसरे में शामिल हो रहे हैं और न ही साथ मिलकर लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं चुनाव के समय कांग्रेस भाजपा या अन्य विरोधी दलों से माड़ंवाली करते दिखाई देते हैं। ऐसे बहुजन समाज का व्यक्ति अपने आप को ठगा महसूस करता है। चार साल से अम्बेडकर के नाम की माला जपते हैं और चुनाव में अम्बेडकर और कांशीराम के विचारों को पैरों तले रौंदा जाता है।

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