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हर महीने रेवड़ी बांटना प्रदेश को कर्ज के समंदर में डालने जैसा है। आख़िर रोजगार पर बात करने से क्यों डरती है सरकारें ?

कबीर मिशन समाचार, भोपाल मध्यप्रदेश

आप सभी जानते हैं कि पांच राज्यों के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है। अलग-अलग तारीखों में पांचो राज्यों में मतदान किया जाएगा। परिणाम 3 दिसंबर को आएगा। सभी पार्टी अपने अपने स्तर पर चुनावी मैदान में उतर चुकी है। लेकिन सभी पार्टी इस कोशिश में रहती है कि किसी भी प्रकार से जीत हासिल करना। सभी एक दूसरे पर कटाक्ष करते रहते हैं। ये सारी बातें होती रहती है। और यही अलग-अलग चुनाव में होता भी आया है। हर कोई एक दूसरे को नीचे दिखाने का प्रयास करते हैं।

लेकिन इन सबसे अलग एक महत्वपूर्ण बात यह है, कि एक आम नागरिक अपने घर की जरूरत को पूरा करने के लिए दिन-रात प्रयास करता रहता है। आर्थिक रूप से किस प्रकार समन्वय स्थापित करता है। यह हर एक नागरिक को पता है, कि किस प्रकार से भविष्य में आने वाली जिम्मेदारियां और आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे की जाएगी। तो फिर बात यहां आती है, कि हमारे द्वारा चुने जाने वाले प्रतिनिधियों को या पार्टियों को यह क्यों समझ में नहीं आता है, कि एक प्रदेश को भविष्य में ऊंचाई पर ले जाने के लिए जहां कोशिश की जानी चाहिए। इसके इतर हर महीने सत्ता लोलुपता की खातिर चुनावी रेवड़िया बांटने का यह ढिंढोरा क्यों पीटा जाता है। और इस चुनावी रेवड़ी बांटने में कोई भी पीछे रहना नहीं चाहता है। अर्थात सत्ता पाने का मूल मंत्र ही इस बात को समझ लिया गया है, कि एकमात्र यही सहारा है जहां जनता को मूर्ख समझने का प्रयास किया जा रहा है।

ऐसा क्यों नहीं किया जाता है ?

हजारों करोड़ों रुपए हर महीने बर्बाद करने की जगह कभी सच में कोई भी सत्ताधारी पार्टी किसी भी राज्य की जनता के भविष्य के लिए वाकई में कुछ करना चाहती है तो उन्हें ग्रामीण अंचलों में छोटे-छोटे उद्योग लगाने का प्रयास किया जाना चाहिए। जिससे वे अपनी मेहनत से अपने भविष्य को गढ़ सकेंगे। इसी प्रकार से शहरी क्षेत्र में भी उद्योग काफी प्रभावित रहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि जनता मेहनत का खाना जानती है। लेकिन कमी सिर्फ इस चीज की है, कि औद्योगिक व्यवस्थाएं परिपूर्ण नहीं है। जनता को सरकार के हर महीने हजार, पंद्रह सौ, दो हजार कतई नहीं चाहिए। उन्हें सिर्फ और सिर्फ रोजगार चाहिए। जिससे वो एक माह में ही आपके हजार, पंद्रह सौ की जगह कई हज़ार रुपये कमा सकते हैं। और इन हज़ार, पंद्रह सौ से सरकार प्रदेश की प्रगति में लगा सके।

जनता को भी चाहिए कि ऐसे मुद्दों पर खुलकर बात करें। आखिर इन कुछ रुपयों से कौन सा घर चल रहा है। नहीं चाहिए ऐसी हमदर्दी, जनता को कहना होगा। खुद की औऱ प्रदेश के भविष्य के लिए कहना होगा। कि हमें सिर्फ़ और सिर्फ़ रोजगार चाहिए। तब जाकर कर्ज के बोझ तले दबे हुए प्रदेश को राहत महसूस होगी।

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