मध्यप्रदेश राजगढ़

राजगढ़। छापरी कलां के दो शिक्षकों ने बदल दी अपने विद्यालय की तस्वीर

कबीर मिशन समाचार।

राजगढ़ 24 जनवरी, 2022
हमें अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए। हम जो काम करें और जहां रहे उसे अपना मानेगें तो ही परिणाम भी बेहतर होंगे। यह कहना है छापरीकलां प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक श्री हिम्मत सिंह मीणा का। श्री हिम्मत सिंह दो वर्ष पूर्व श्योरपुर से स्थानान्तरित हो राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ अनुभाग अंतर्गत छापरीकलां प्राथमिक विद्यालय में पदस्थ हुए है।

उन्होंने बताया कि जब वे अपने पदस्थापना स्थल छापरीकलां प्राथमिक विद्यालय में ज्वाईनिंग देने पहुंचे थे तो स्कूल बहुत खराब स्थिति में था। भवन का प्लास्टर एवं फर्ष जगह-जगह से उखड रहा था। बच्चों के बैठने के लिए दरी-टाट पट्टी भी नही थी और छात्रों की संख्या भी महज 10 थी। प्राथमिक विद्यालय भी बंद होने की कगार में खड़ा था। उन्होंने बताया कि तब उन्हें बड़ी शर्मिद्धगी महसूस हुई थी। उन्होंने विद्यालय भवन और कम छात्रों को देखते हुए अपने विद्यालय का कायाकल्प करने की ठानी। ऐसे में सबसे पहले स्कूल के अन्य शिक्षक एवं संस्था प्रभारी श्री सुरेष तिवारी का उन्हें साथ मिला।

उन्होंने छापरीकलां के ग्रामीणों को अपनी बात बताई और संकल्प दोहराया। श्री हिम्मत सिंह ने अपने वेतन से लगभग 80 हजार रूपये लगा कर स्कूल भवन की मरम्मत कराई, फर्ष सुधराया, रंग-रोगन और वाल-पेंटिग तो कराई ही साथ ही वे अपने छात्रों की सुविधाएं जुटाने में भी पीछे नही रहे। वे अपने छात्रों के बैठने के लिए दरी, कापी और पेन-पेंन्सिलें भी लाना नही भूलें। ग्रामीणों की सहायता से लगभग 40 हजार रूपये की और मदद मिलने पर कुर्सी-टेबलों की व्यवस्था भी कर दी। स्कूल में छात्रों की संख्या बढ़ाने ग्राम में जनजागरूकता अभियान चलाया। नतीजन जहां पहले कभी 10 बच्चे पढ़ने आते थे आज वही संख्या बढ़कर 35 हो गई है।

शिक्षक श्री हिम्मत सिंह ने बताया कि वे अपने कर्म से कभी पीछे नही हटते है। इसमें परिवार के लोग भी उनका पूरा साथ देते है। वे स्वयं अपने बड़े बच्चे का अपने विद्यालय में ही एडमीशन करा कर वही पढ़ा रहे है। छोटा बच्चा अभी 7-8 महीने का है। उन्होंने कहा कि लेकिन जब वह पढ़ने लायक होगा तो उसका एडमीषन भी वे अपने विद्यालय में ही कराएंगे।
शिक्षक श्री हिम्मत सिंह एवं श्री सुरेश तिवारी ने चर्चा के दौरान बताया कि स्कूल सिर्फ हमारा है यह सोचने मात्र से विद्यालय अच्छा नहीं हो जाएगा। शिक्षकों और छात्रों को विद्यालय में उत्तम व्यवस्थाओं के लिए उसे अपना नही ‘‘मेरा विद्यालय‘‘ समझना भी आवष्यक है।

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