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“हरिजन” इस शब्द को बोलना लिखना पड़ सकता है भारी आम आदमी हो या सरकारी, सुप्रीम कोर्ट ने किया बेन, एससी एसटी एक्ट तहत होगी एफआईआर

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सुप्रीम कोर्ट ने हरिजन लिखने बोलने को आपराधिक माना हरिजन कहने लिखने पर हो सकती है सजा सुप्रीम कोर्ट ने भी हरिजन शब्द को आपराधिक माना है।

भारत सरकार ने वर्ष 1982 में ही दलितों के लिए हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा चुकी थी लेकिन सार्वजनिक जीवन में इस शब्द का इस्तेमाल आज भी दलितों के लिए होता रहा आ रहा है।

महात्मा ने “हरिजन” शब्द का प्रयोग हिन्दू समाज के उन समुदायों के लिये करना शुरु किया था जो सामाजिक रूप से बहिष्कृत माने जाते थे। इनके साथ ऊँची जाति के लोग छुआछूत का व्यवहार करते थे अर्थात उन्हें अछूत समझा जाता था। जिसका बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर ने इस शब्द का विरोध किया था।

केंद्र व केरल राज्य की सरकार भी अलग-अलग अध्यादेश द्वारा प्रतिबंध लगा चुकी है। हरिजन शब्द के प्रयोग पर संशोधित अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार अधिनियम व भारतीय दंड संहिता की धाराओं में केस दर्ज हो सकता है, व जाना पड़ सकता है जेल।हरिजन शब्द का प्रयोग करने वाले लोगों व सरकारी काम काज में इसका इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज हो सकता है। महात्मा गांधी द्वारा भारत के अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय के लोगों के लिए उपयोग किए गए शब्द हरिजन का प्रयोग करना अब महंगा पड़ सकता है।

नेशनल एलाइंस फॉर दलित हुमन राइट्स के संयोजक व दलित राइटस एक्टिविस्ट, अधिवक्ता रजत कल्सन ने बताया कि महात्मा गांधी द्वारा देश के अनुसूचित जातिव जनजाति वर्ग के लिए इज़ाद किए गए शब्द हरिजन का शुरू से ही विरोध रहा है। उन्होंने कहा कि भारत का अनुसूचित जाति व जनजाति समुदाय शुरू से ही इस शब्द को अपने लिए अपमान जनक मानता आ रहा है

तथा इस पर रोक लगाने के लिए आजादी के बाद से ही आवाज उठनी शुरू हो गई थी। भारत की राष्ट्रपति ने भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के पत्र दिनांक 22-11-12 व क्रमांक 17020/64/2010 / SCD (RL CELL) के मार्फत सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को सर्कुलर जारी कर हरिजन शब्द के सरकारी काम काज में इस्तेमाल पर तुरंत रोक लगाने के आदेश दिए हुए हैं।

इसी के साथ सन 2008 में केरल सरकार भी हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर पूर्णतया रोक लगा चुकी है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की मोहर भी लग गई है ।

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले क्रिमिनल अपील नम्बर 570/17 में मंजू सिंह बनाम ओंकार सिंह आहलूवालिया में 24 मार्च 2017 को आरोपी ओंकार सिंह अहलूवालिया द्वारा हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर दर्ज हुए मुकदमे में हाई कोर्ट द्वारा अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार की धारा 18 में अग्रिम जमानत पर प्रतिषेध के बावजूद जमानत दिए जाने के आदेश को खारिज करते हुए हरिजन शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी टिप्पणी की तथा बैंच ने कहा कि इस बात का आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हरिजन शब्द का इस्तेमाल उच्च जाति के लोगों द्वारा अनुसूचित जाति के लोगों को नीचा दिखाने व अपमानित करने के लिए किया जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हरिजन शब्द का प्रयोग अपमान जनक के साथ-साथ आपराधिक भी है, इसलिए इस तरह के मामलों में अपराधी को अग्रिम जमानत का लाभ नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हरिजन शब्द का इस्तेमाल जानबूझकर एक जाति विशेष को नीचा दिखाने व अपमानित करने के लिए किया जा रहा है ।

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि देश का नागरिक होने के नाते हमें एक बात अपने दिल और दिमाग में रखनी चाहिए कि हम देश के किसी भी नागरिक को इस तरह की भाषा का प्रयोग कर नीचा दिखाना या अपमानित नहीं कर सकते अगर ऐसा करते हैं तो यह आपराधिक होगा। इन दिनों पुलिस व सरकारी अधिकारियों द्वारा सरकारी कामकाज में भारत सरकार के उपरोक्त निर्देश व सुप्रीम कोर्ट की उपरोक्त जजमेंट के बावजूद हरिजन शब्द का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है तथा सरकारी अधिकारी तथा लोग जानबूझकर सरकारी आदेशों व कोर्ट के आदेशों की आपराधिक अवहेलना कर रहे हैं ।

उन्होंने कहा कि यदि उनके संज्ञान में इस तरह का कोई मामला आता है कि सरकारी या पुलिस विभाग का कोई कर्मचारी या अधिकारी अपने सरकारी कामकाज में हरिजन शब्द का प्रयोग कर रहा है तो वह उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराने का काम करेंगें। इस शब्द का इस्तेमाल करने पर उसके खिलाफ एससी एसटी एक्ट की धारा 3(1) (आर) (एस) (यू) व आईपीसी की धारा 295 A व 505 के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है तथा इसमें जेल भी जाना पड़ सकता है तथा अपराध साबित होने पर आरोपी को कम से कम 5 साल तक की सजा भी हो सकती है।

उन्होंने दलित समाज को संदेश दिया कि यदि उनके मामले में इस तरह का कोई मामला संज्ञान में आता है तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का काम करें ताकि इस तरह के शब्द के प्रयोग करने वालों पर लगाम लगाई जा सके। केंद्र सरकार ने 1990 में कल्याण मंत्रालय (अब सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) की एक अधिसूचना को फिर से जारी किया है, जिसमें दलित वर्गों को अनुसूचित जाति के रूप में संबोधित करने का निर्देश है। दरअसल, मोहन लाल माहौर ने दलित शब्द पर आपत्ति जताते हुए हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि संविधान में इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं है।

इस वर्ग से जुड़े लोगों को अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के रूप में ही संबोधित किया गया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पराशर का कहना है कि यह आदेश मध्य प्रदेश में लागू हो चुका है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने तर्क दिया है कि 10 फरवरी, 1982 को गृह मंत्रालय ने राज्यों को दिये निर्देश में कहा था कि अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करते समय संबंधित पत्र में ‘हरिजन’ शब्द हर्गिज ना लिखा जाए। साथ ही राष्ट्रपति के आदेश के तहत ‘अनुसूचित जाति’ के रूप में उनकी पहचान का उल्लेख करने को कहा था।

18 अगस्त 1990 में मंत्रालय ने राज्य सरकारों से शेड्यूल्ड कास्ट (एससी) के अनुवाद के रूप में में ‘अनुसूचित जाति’ उपयोग करने का अनुरोध किया था। लेकिन फिर भी लोग बिना किसी संकोच के हरिजन बोलते हैं और इससे बड़ी बात यह है कि सरकारी अधिकारी कर्मचारी की जुबान पर भी यही शब्द आता है और कागजों तक में लिखाता है। इसके कई उदाहरण मप्र में देखने को मिला है। भिंड कलेक्टर ने भी फेसबुक पेज पर हरिजन शब्द का प्रयोग किया था बाद में माफी मांगी और संशोधन किया।

सुर्पीम कोर्ट का वहां आदेश के साथ सरकार को सभी जिला मुख्यालयों और थानों पर आदेशित कर पुनः भेजना चाहिए ताकि उन्हें मालूम हो कि इस शब्द का प्रयोग नहीं करना है। साथ ही एक आदेश ग्राम पंचायत में जारी करे जिससे गांव में भी इसकी जानकारी हो सकें। चुकी घटना और आदेश को बहुत साल हो चुके हैं और लोग भूल गए हैं। उस समय अशिक्षा के कारण भी आदेश आज तक करोड़ों लोगों ने नहीं पड़ा है।

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